परिका के घर के पास एक मैदान था। जो उसकी बालकनी से दिखता था। उस मैदान में लोग कभी अपनी गाड़ियां खड़ी करते तो कभी सर्दी में धूप में बैठ जाते थे। कभी-कभी गायों का झुंड या कुत्तों का ग्रुप भी उस में धूप सेकते नजर आते थे। मार्च के महीने का अंतिम चरण चल रहा था। सूर्य की किरणें बहुत तेज हो गई थी। अब धूप अच्छी नहीं लग रही थी। एक दिन परिका ने देखा कि कुछ गाय इतनी तेज धूप में भी दोपहर 1:00 बजे तक उस मैदान में बैठी हैं। यह देखकर, परिका सोचने लगी क्या इन्हें गर्मी नहीं लग रही है? ये क्यों इतनी तेज धूप में बैठी है ? ऐसे तो इनको प्यास लग जाएगी, क्यों यें अपने शरीर को कष्ट दे रही हैं ?
प्रतिदिन परिका कुछ गायों के झुंड को वहां बैठे देखती और वही प्रश्न उसके मन में घूमने लगते। फिर उसके मन में ही answer आया, हो सकता है, इनको कोई health related Problem हो और यहाँ धूप में बैठकर इस तरह अपनी healing कर रही हों
![]() ![]() इस तरह कुछ दिन बीत गए। एक दिन दोपहर 2:00 बजे के करीब परिका ने देखा कि दो गाय, एक काली और एक ब्राउन खड़ी है और एक सफेद गाय बैठी है। उसके पास एक छोटा सा सफेद रंग का बछड़ा भी खड़ा दिखाई दे रहा है। छोटा बछड़ा गाय के पास खड़ा होकर एक साइड से, दूसरी साइड जाने की कोशिश कर रहा है, पर इतना कमजोर है कि उससे चला भी नहीं जा रहा था। बड़ी मुश्किल से गाय के दूसरी और जाकर उसके पास खड़ा हो गया, पर गाय का तो कोई reaction ही नहीं था।ऐसा लग रहा था जैसे कि वह उसे जानती ही ना हो।
परिका की एक friend भी उसके घर आई हुई थी। वह भी उस बछड़े को देखने लगी और उन दोनों को उस बछड़े पर तरस आने लगा। परिका बोली.. इससे चला नहीं जा रहा है फिर क्यों गाय के चारों तरफ घूम रहा है ।
तभी उन्हें लगा शायद ये अभी अभी पैदा हुआ है और इसलिये ही इससे चला भी नहीं जा रहा है और भूखा भी है। गाय जिस तरह उसकी उपेक्षा कर रही थी, उसे देखकर, उन्हें लगा कि ये शायद थोड़ी दूर पर खड़ी, उन दोनों गाय में से किसी का बछड़ा है और गलती से इस गाय को अपनी मां समझ रहा है।
थोड़ी देर बाद उन्होंने देखा…वह ब्राउन रंग वाली गाय के पास आकर खड़ा हो गया। अब उन दोनों को समझ आ गया कि ये इस गाय का ही बछड़ा है। अचानक उन्होंने देखा कि ब्राउन गाय ने उसे उपेक्षित कर दिया और अपने मुंह से उसे दूर को धकेल दिया। बछड़ा बेचारा लड़खड़ाता हुआ वहीं बैठ गया। थोड़ी देर में खड़ा हुआ, फिर ब्राउन गाय के पास आ गया। इस बार गाय ने और तेजी से अपने मुंह से, उस बछड़े को दूर धकेल दिया। थोड़ी दूर लड़खड़ाकर चलता हुआ बछड़ा छाया में बैठ गया।
![]() ![]() तभी दो कुत्ते वहाँ आ गए और उस बछड़े को भौंकने लगे। यह देखकर काली और ब्राउन गाय तेजी से आईं और कुत्तों को डरा कर भगा दिया। परिका और उसकी Friend सोचने लगीं कि ये ब्राउन गाय का ही बछड़ा है और इसकी माँ इसको धकेल नहीं रही, बल्कि इस तरह इसको चलना सिखा रही थी।
दोनों निश्चिंत होकर कमरे में आकर बैठ गईं। शाम होने को थी , तभी वे बालकनी में गईं तो देखा सभी गाय जा चुकी थीं केवल एक सफेद गाय मैदान में बैठी थी और बछड़ा उसके पास खड़ा था। दोनों को लगा ये बछड़ा तो फिर इस गाय के पास आ गया। वे दोनों कुछ समझ नहीं पा रही थीं। परिका बोली… क्या यह सफेद गाय का ही बछड़ा है और गाय इतनी निर्मोही कैसे दिख रही है कि कोई वात्सल्य बछड़े के लिये नहीं दिखा रही। यह गाय भी, बछड़ा भी इतनी देर से भूखे प्यासे हैं। रात होने को हो रही है कुछ समझ नहीं आ रहा।
दोनों को बछड़े के भाग्य पर तरस आ रहा था कि बेचारा भूखा है, चला नहीं जा रहा और यह भी नहीं पता इसकी माता कौन सी गाय है? कोई भी गाय इसको वात्सल्य नहीं दे रही थी।
परिका और उसकी friend कनिका दुखी होकर उनके बारे में बात करने लगीं .. कैसा कठिन जीवन है इन पशुओं का? कितना कष्ट चुपचाप सहन करते हैं? शांत रहते हैं और मनुष्य तो जरा सा कष्ट हुआ नहीं कि चिल्लाने लगता है। अपने साथ दूसरों को भी दुखी कर देता है।
कनिका परिका से बोली.. यह बछड़ा और गाय तो मुझे बहुत अजीब लग रहे हैं। मैंने तो छोटे बछड़ों को रम्भाते हुए सुना है, यदि उसकी मां थोड़ी दूर भी चली जाए और गाय भी ऐसे में रम्भाकर, अपनी आवाज में अपने बछड़े को बुलाती है। यहां तो ना तो यह बछड़ा कुछ आवाज कर रहा है। और गाय को देख कर तो ऐसा लग रहा है जैसे उसे इस बछड़े में से कोई मतलब ही नहीं।
यह सुनकर परिका बोली… यही बात मेरे मन में भी घूम रही है। ऐसा क्यों हो रहा है? ये हो सकता है कि यह किसी और गाय का बछड़ा हो और कोई इसे यहां छोड़ गया हो। बेचारा कितना कमजोर, दुर्बल और इस गर्मी में भूखा प्यासा अपनी मां को ढूंढ रहा है। हे भगवान! इसके लिए कुछ कर दो। मुझ से इस बछड़े का कष्ट नहीं देखा जा रहा है।
![]() थोड़ी देर बाद दोनों बालकनी में गईं, गाय और बछड़े को देखने, तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने देखा, सफेद गाय खड़ी हो हुई है और बछड़ा उसका दूध पी रहा है। गाय अपने बछड़े पर वात्सल्य उंडेल रही थी। दोनों प्रसन्नता से बहुत देर तक बछड़ेऔर गाय को देखती रहीं। वे इस बात को सोच कर खुश थीं कि चलो इस बेचारे बछड़े का कुछ पेट भर गयाl अपनी मां का इसे वात्सल्य मिल गया। कुछ देर पहले तो अनाथ की तरह घूम रहा था।
दोनों निश्चिंत होकर अपने काम में लग गईं। रात को 8:00 बजे परिका ने देखा, वह सफेद गाय और बछड़ा अभी भी मैदान में थे। बाकी सभी गाय वहाँ से जा चुकी थीं। गाय बैठी थी और बछड़ा उस से सटा हुआ खड़ा था। मैदान में बिखरी चाँद की रोशनी में बछड़ा ऐसा लग रहा था जैसे कोई सफेद रंग का सुंदर सा हिरण खड़ा हो।
![]() परिका बछड़े के लिए तो खुश हुई पर उसे लगा, शायद यह गाय बीमार है। तभी तो अभी तक यहाँ बैठी है और अपने बछड़े पर भी इसने इतनी देर बाद ध्यान दिया। हो सकता है किसी कष्ट में हो। यह भी बेचारी भूखी प्यासी है। गर्मी में इसे भी तो प्यास लग रही होगी। मैदान थोड़ा दूर था, रात में गाय के लिए पानी ले जाना परिका के लिए संभव नहीं था। फिर उसने सोचा हो सकता है गाय को अभी पानी नहीं पीना हो, इससे यहां बैठी है।
रात को 12:00 बजे सोने सोने जाने से पहले परिका एक बार फिर गाय बछड़े को देखने के लिए बालकनी में आई। उसने देखा किसी व्यक्ति ने एक पानी की बाल्टी गाय के आगे रख दी थी और गाय खड़े होकर पानी पी रही थी। यह देख कर पारिका को बहुत खुशी मिली। उसका मन, इतना आनन्दित था, जैसे अपनी कोई महत्वपूर्ण इच्छा पूर्ण होने पर होता है। निरीह पशुओं के दुख को समझने में वो अपनी जिंदगी की टेंशन भी भूल कर, अपने को हल्का महसूस कर रही थी।
अगले दिन सुबह जब परिका उठी तो उसने देखा गाय और बछड़ा दोनों मैदान से गायब थे। थोड़ी देर में उसने देखा, वही सफेद गाय रम्भाती हुई मैदान के पास घूम रही है। पर उसका बछड़ा गायब था। परिका का मन आशंका से भर गया.. बछड़ा कहां चला गया? कोई ले तो नहीं गया, बेचारे मासूम को? बेचारी गाय अपने बछड़े को ढूंढती फिर रही है। कितने खतरो में और अनिश्चित जिंदगी है इन पशुओं की।
दिन के 11:00 बजे गए तो दूसरी गायों का झुंड प्रतिदिन की तरह धूप में आकर बैठ गया। वह सफेद गाय भी वहां पर एक अन्य गाय के साथ खड़ी थी। पर कहीं भी बछड़ा नहीं दिख रहा था। परिका प्रत्येक 10 मिनट बाद आकर बालकनी में देख रही थी कि कहीं बछड़ा दिख जाए लेकिन वह बछड़ा कहीं नहीं था। गाय भी थक कर बैठ गई थी।
परिका के मन में आशंका बढ़ गई …लगता है रात को ही कोई बेचारे बछड़े को ले गया। वरना तो यहीं दिखता और यह गाय भी अब चुप होकर बैठ गई, अपनी किस्मत से समझौता करके, ऐसा लगता है। परिका बस अब उस बछड़े के बारे में सोच रही थी… पता नहीं बेचारा कहां होगा? कितना दुख उसने पैदा होते ही देखा? परीका का मन दुख से भर उठा था। तभी घड़ी की सुई 12:00 बजे के आसपास थी कि किसी गाय के रम्भाने की आवाज आई। दुखी मन से परिका बालकनी में गई पर वहाँ जाते ही खुश हो गई। देखा वहीं छोटा सा सुंदर बछड़ा सफेद गाय के पास खड़ा था। परिका ने चैन की सांस ली..चलो यह सही सलामत है। भगवान ने इसकी रक्षा की। शाम तक वह गाय और बछड़ा उसी मैदान में रहे फिर अपने स्थान पर चले गए।
परिका को जब भी यह घटना याद आती, उसका मन खुश हो जाता। उसे लगता अपने लिए तो अच्छा सभी चाहते हैं पर किसी दूसरे के लिए अच्छा चाहने का आनंद ही अलग होता है। जब लाचार, बेसहारा पशुओं के लिए अच्छी भावना की जाती है और वह साथ ही साथ पूरी हो जाती है तो उसका आनंद भी दुगना हो जाता है। परिका को उस दिन नया अनुभव हुआ.. जब अपना मन अपनी टेंशन में दुखी हो तो दूसरे दुखी जनों के बारे में अच्छी भावना करने से, अपना दुख और कष्ट भी कम हो जाता है।
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दूसरों के लिए अच्छी भावना करने का अपने पर क्या प्रभाव पड़ा
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Bahut Sundar kahani
बहुत सुंदर विचार
Nice story…👍