दूसरे का भला किया तो अपना भी भला हुआ
एक दिन परिका की friend कनिका उसके घर आई हुई थी। मार्च का महीना था। तभी बहुत तेज बारिश होने लगी। यह देखकर पारिका बोली.. कनिका देखो ना, मार्च में कितनी बारिश हो रही है जबकि इस बार सर्दी के मौसम में सूखा ही रहा।
कनिका— हां इस बार नाम की ही बारिश हुई दिसंबर में और फरवरी में तो इतनी गर्मी आ गई कि पंखे भी चलाने पड़ गए।
परिका— ऐसा लग रहा है, जो सर्दी फरवरी में आनी चाहिए थी, अब मार्च में आ गई है।
कनिका— मैंने तो अपने स्वेटर भी उठा कर रख दिए थे। अब दोबारा से निकालने पड़े। पारिका.. हां मैंने भी, अब पता नहीं कैसा मौसम हो रहा है, सुबह को स्वेटर पहनने पड़ रहे हैं, दोपहर को पंखा चल जाता है और रात को ठंड हो जाती है तो कम्बल ओढ़ना पड़ता है।
कनिका— आज के समय में मौसम को भी समझना बड़ा मुश्किल हो गया है।
परिका— जैसे इन्सान रंग बदलता है वैसे ही मौसम भी बार-बार रंग बदल रहा है।
कनिका हंसते हुए.. लगता है, मौसम पर भी मनुष्य की संगति का असर हो गया है।
पारिका— हा हा हा हंसते हुए, कनिका सही कह रही हो, पर मुझे किसानों के लिए बहुत दुख हो रहा है। उनकी गेहूं की फसल कटने को तैयार थी। अब daily यह तेज बारिश और तूफान के कारण उनकी फसल का बहुत नुकसान हो गया है।
कनिका—.यह बारिश यदि दिसम्बर में आती तो किसानों की फसल को लाभ होता। विज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली पर बेचारे किसानों के लिए इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकल पाया कि उनकी फसल मौसम के भरोसे ना रहती।
परिका— उनके लिए तो फसल investment की तरह होती है। फसल नष्ट हो जाती है तो उससे होने वाली income भी नष्ट और साथ ही investment भी नष्ट हो जाती है।

कनिका—यह सोचकर मुझे भी बहुत दुख होता है। वैसे एक positive कार्य हुआ है कि सरकार ने इस तरह की आपदा में फसल को होने वाले नुकसान के भुगतान के लिए, फसल सुरक्षा बीमा ऐसी कोई योजना शुरू कर दी है । इससे पहले तो किसानों के लिए ऐसी आपदा के समय बहुत ज्यादा मुश्किल हो जाती थी।
परिका—हां, इस बीमा योजना से उन्हें सपोर्ट तो मिल जाएगा पर फिर भी मैं तो यही प्रार्थना करती रही, हे वर्षा !अभी मत आओ। किसानों की फसल कट जाए, तब आ जाना।
कनिका—परिका तुम बहुत दयालु हो।
परिका—कनिका, वह तो तुम भी हो। हां, मैंने एक अच्छी खबर पढ़ी न्यूज़पेपर में। कुछ किसानों ने इस बार पराली को जलाया नहीं बल्कि मेहनत करके और कुछ लागत लगाकर, अपने खेतों की मिट्टी में उस पराली को मिला दिया, गेहूं का बीज बोने से पहले। और देखो ये चमत्कार हुआ कि वहां पर बहुत बारिश, तूफान, ओलावृष्टि हुई पर उनकी फसल नष्ट होकर, जमीन पर नहीं गिरी। उनके खेतों में पानी भी भर गया लेकिन मिट्टी में पराली मिली होने के कारण, फसल की जड़े मजबूत रही और फसल इस आपदा में भी सुरक्षित रही।
कनिका—अरे वाह परिका, ये तो तुमने बहुत अच्छी खबर सुनाई। पराली जलाने से तो बहुत ज्यादा वायु प्रदूषण हो जाता है। पराली जलने से पैदा हुआ धुआं, जब हवा के साथ दूर के शहरों में पहुंचता है तो लोगों का सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है।
परिका—हमारे यहां भी तो कितनी घुटन हो जाती है कनिका, दिवाली से पहले पराली के धुएं के कारण। इतना वायु प्रदूषण हो जाता है कि घर से बाहर निकलना भी कठिन हो जाता है। देखो तो कुदरत या प्रकृति का परोपकार, जिन किसानों ने प्रकृति के लिए सोचा, उसकी स्वच्छ वायु को पराली जला कर प्रदूषित नहीं किया और अन्य मनुष्यों के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा। प्रकृति ने उनका भी ध्यान रखा। इतने संकट में जहां दूसरे किसान मुश्किल में आ गए। वहीं इन किसानों की फसलें खेत में खड़ी, पहले की तरह मुस्कुरा रही हैं।
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कनिका—शायद इसे ही कहते हैं, कर भला तो हो भला।
परिका— बिल्कुल, किसी का भी भला करने का, अच्छा ही फल मिलता है। भले ही वह तुरन्त मिले या कुछ समय बाद मिले, उसका हमें पता चले या पता भी ना चले, पर अच्छा फल किसी ना किसी रूप में अवश्य मिलता ही है।
कनिका —-मुझे भी ऐसा ही लगता है,जैसे पराली न जलाने वाले किसानों को भी अपने अच्छे कार्य का अच्छा फल ही मिला।
परिका—हां कनिका, इसलिए हमें जब भी अवसर मिले भलाई के कार्य करते रहना चाहिए।
कनिका—हां बिल्कुल सही कहा परिका तुमने। मैं भी इस बात का ध्यान रखूंगी।