अभ्यास एवं संकल्प

छोटे से नियम और अभ्यास हमारे जीवन के लिए बहुत उपयोगी हो जाते हैं । ये एक तरफ हमारी health के लिए लाभदायक होते हैं, तो दूसरी तरफ हमारे आध्यात्मिक विकास में भी सहायक होते हैं। इन छोटे से अभ्यासों के द्वारा हमारा अच्छा भाग्य( good luck)  भी बनता है और साथ ही मन भी प्रसन्न होता है।

समय समय पर इस page पर , जीवन के लिए महत्वपूर्ण नए संकल्प (resolutions) और अभ्यास (practice) update होते रहेंगे।


अभ्यास-22

इस सप्ताह हम revision अभ्यास करेंगे

अभी तक हमने 21 संकल्प और अभ्यास पूर्ण कर लिए हैं। इस सप्ताह हम रिवीजन अभ्यास करेंगे। इसको हम चार प्रकार से कर सकते हैं। 

1. जो भी अभ्यास हमें सबसे अच्छा लगा उसे पूरे सप्ताह कर सकते हैं या

2. सप्ताह के सभी 7 दिन एक एक नया अभ्यास कर सकते हैं या

3. एक दिन में एक से अधिक अभ्यास भी हम ले सकते हैं या

4. पूरे सप्ताह में ये सभी  21 अभ्यास अपने अनुसार जैसे कर चाहे कर सकते हैं।

ये रिवीजन अभ्यास हमारे लिए अच्छी habits विकसित करने में सहायक होगा। जिससे हम चलते फिरते भी पुण्य जोड़ सकते हैं दूसरे शब्दों में अपने लिए अच्छा भाग्य बना सकते हैं।

एक सप्ताह बाद नए अभ्यास इसी website के नए पेज पर आयेंगे।

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अभ्यास-21

21.- अच्छी भावना बनाए रखने का अभ्यास

ऐसे व्यक्ति या जीव जो हमारे लिए अनजान हैं, हम उनके लिए भी किस प्रकार अच्छी भावना भा सकते हैं? हम उनके दुखों के प्रति संवेदनशील कैसे बन सकते हैं? इसके लिए ही हमें ये अभ्यास करना है — TV चैनल, Youtube, न्यूज पेपर, इनसे जब भी हमें दूसरे अनजान लोगों के दुखों के बारे में पता चलता है तो हम उनके लिए, ये भावना भाएं– भगवान उनका दुख दूर हो, उनको कोई सहारा मिले, उनको दुख सहने की क्षमता मिले आदि आदि। उदाहरण के लिए हमें पता है, आज गुजरात के तटों से चक्रवाती तूफान बिपरजॉय टकराने वाला है तो हम केवल दर्शक की तरह, टीवी चैनल पर इसे न देखें बल्कि ये भावना करें – वहाँ पर लोगों के जानमाल की रक्षा हो, कम से कम नुकसान हो, प्रभावितों का जो नुकसान हो उसके लिए सपोर्ट मिले, उनका दुख कम हो आदि। इसी तरह, हमें एक सप्ताह तक जानकारी में आने वाली घटनाओं के लिए अच्छी भावना भानी है।

इस अभ्यास के 3 लाभ होंगे पहला तो ये कि चलते फिरते, इससे हमारे लिए पुण्य जुड़ेगा, दूसरा हमारा Aura positive बनेगा और तीसरा हमारी अच्छी भावना का प्रभाव यदि दुखी जन तक पहुंचेगा तो उनके  मानसिक दुख में भी कमी आयेगी।

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अभ्यास-20

20.- भगवान को धन्यवाद देने और क्षमा मांगने का अभ्यास

जब भी हमारी इच्छा या मन के अनुसार कुछ कार्य हो जाता है तो हम खुश हो जाते हैं। कभी उस कार्य के लिए, अपनी खुद की प्रशंसा करते रहते हैं तो कभी अपनों की । पर उसके लिए भगवान को धन्यवाद देना भूल जाते हैं । उदाहरण के लिए, हमें कहीं घूमने जाना था और उसी समय हमें  बुखार आ गया तो हम दुखी हो जाते हैं, पर यदि हम  घूमने चले गए, कोई बाधा नहीं आई तो उसके लिए हम भगवान को, गुरू को धन्यवाद देना भूल जाते हैं। इसलिए एक सप्ताह के लिए, हमारे साथ जो भी अच्छा या अनुकूल होता है उसके लिए उसी समय मन ही मन में  भगवान को, गुरु को धन्यवाद देने का अभ्यास और जो भी प्रतिकूल  होता है, उसके लिए अपने द्वारा पूर्व में बांधे गए कर्मो को जिम्मेदार मानकर, जाने अनजाने में किए गए, इन अशुभ कार्यों के लिए क्षमा मांगने का अभ्यास करना है।

इस अभ्यास से, हमारे जीवन में भगवान को धन्यवाद देने के अवसर आते रहेंगे और अशुभ कर्मो के लिए क्षमा मांगने से वो अशुभ कर्म दोबारा से हमारी आत्मा में नहीं बंधेगे और भविष्य में हमारे लिए दुख का कारण भी नहीं बनेंगे।

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अभ्यास-19

19.-शुभ उपयोग के कार्य का अभ्यास

एक सप्ताह तक हम प्रतिदिन अपने द्वारा किए जा रहे शुभ उपयोग के कार्यों की गिनती करेंगे और एक कार्य के लिए अपने को 1 नम्बर देंगे। सोने से पहले पूरे दिन में प्राप्त किए गए नम्बर को कहीं लिख लेंगे। ऐसा पूरा week करना है और सप्ताह के अन्त में अपने नम्बर का total करके देखेंगे कि हमने कितने नम्बर प्राप्त किए। इस total को आप नीचे कमेंट में भी लिख सकते हैं। ये अभ्यास अच्छे संस्कार बनाने और अशुभ कर्मो को तोड़ने में सहायक होगा। 

अब प्रश्न ये है? कि शुभ उपयोग के कार्य कौन से हैं । इसमें देव पूजा, भजन , स्तुति, चालीसा, स्वाध्याय, चिन्तन, प्रवचन सुनना, मंत्र जाप, चलते फिरते मन ही मन में  भजन गुनगुनाना या मंत्र बोलना, दान, पक्षी को दाना, गाय को रोटी देना, बच्चों को धर्म की कोई शिक्षा देना, धर्म के संस्कार देना, उस दिन के लिए कोई नया नियम, संयम लेना, कोई तप करना जैसे किसी रस का त्याग, गुरु के दर्शन, गुरु भक्ति, गुरुजन की सेवा आदि सभी कार्य शुभ उपयोग में आ जायेंगे। इन सभी का एक- एक नम्बर अपने को देना है। चलते फिरते या खाली बैठे यदि आप भजन, मंत्र, चिंतन मन ही मन में कर रहे हैं तो उसके सुबह- दोपहर- शाम के हिसाब से 3 नम्बर आप ले सकते हैं। ये अभ्यास आपको बता देगा कितना शुभ उपयोग आप करते है जो पुण्य बंध का कारण है।

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अभ्यास-18

18.-वायुकायिक जीवों से क्षमा मांगने और उनको धन्यवाद देने का अभ्यास

तपती गर्मी में हम जब भी पंखा, कूलर या AC ऑन करते हैं,  हमें तो उससे आराम मिलता है पर सूक्ष्म वायुकायिक जीवों को उससे बहुत कष्ट होता है पर वो बेचारे कमजोर असहाय होने के कारण सभी कष्टों को सहन करते हैं। इसलिए एक सप्ताह तक, हम जब भी पंखा कूलर, AC ऑन करेंगे, तो उसी समय इन वायु कायिक जीवों से क्षमा मांगेंगे और उनको धन्यवाद भी देंगे । कभी भी पंखा आदि व्यर्थ में चला कर नहीं रखेंगे। दूसरे कमरे में जाने पर इनको ऑफ करना नहीं भूलना है। ये अभ्यास पुण्य अर्जित कराएगा और आंधी, तूफान आदि आपदाओं से हमारी रक्षा करने में सहायक बनेगा। नीचे दिए गए स्वाध्याय को daily पढ़कर अपना analysis भी करना है। क्या हम ये कार्य तो नही कर रहे हैं।

स्वाध्याय

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अभ्यास-17

17.-अपने स्वास्थ्य के लिए केवल 12 मिनट के  इस योगा को करने का अभ्यास हम करेंगे।

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कहा जाता है .. Heath is wealth. स्वास्थय खराब हो जाता है तो अन्य सभी सुख भी हमें खुशी नहीं दे पाते हैं। इसलिए 24 घंटे में से केवल 12 मिनट अपनी health के लिए अवश्य निकालने है। हमें एक बार ऊपर दिए गए वेबसाइट पेज के heading को क्लिक करके पहले वीडियो को ध्यान से देखना है और फिर वीडियो चलाकर उसके साथ daily इस योग की प्रैक्टिस करनी है। यह एक आध्यात्मिक योग है जो हमें भविष्य में होने वाली अनेक प्रकार की बीमारियों से सुरक्षित करेगा और साथ ही हमें पुण्य का अर्जन भी कराएगा। 7 दिन तक इसका अभ्यास करना है उसके बाद आप अपनी इच्छा से इसको आगे भी continue रख सकते हैं ।

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अभ्यास-16

16.-एक सप्ताह के लिए हम अग्निकायिक जीवों से क्षमा मांगने और उन्हें धन्यवाद देने का अभ्यास करेंगे।

अग्नि कायिक जीव ऐसे सूक्ष्म जीव हैं जिनके ऊपर कभी हमारा ध्यान नहीं जाता और  न ही उनके कष्टों की ओर जाता है। हम जो भोजन करते हैं उसको बनाने में भी अग्नि जलती है और अग्निकायक जीवों को कष्ट होता है। हम उनके इस कष्ट को दूर तो नहीं कर सकते पर उनसे क्षमा मांग सकते हैं। इसलिए एक सप्ताह तक हम जब भी अग्नि जलाएंगे और जब भी भोजन करेंगे, अग्निकायिक जीवों को धन्यवाद देंगे और उनसे क्षमा मांगेंगे। यह अभ्यास हमें पुण्य अर्जन कराएगा। इसके साथ ही अग्नि से होने वाली दुर्घटनाओं और हादसों से भी सुरक्षित रखने में कारण बनेगा। इसके साथ ही नीचे वाले अभ्यास में दिए गए स्वाध्याय में, अग्निकायिक जीव क्यों बनते हैं इस बारे में daily पढ़कर, इन कारणों से बचने का अभ्यास भी करना है।

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अभ्यास-15

15.-एक सप्ताह के लिए हम नीचे दिए गए पेज का स्वाध्याय करेंगे और अपना analysis करेंगे।

जलकायिक, अग्निकायिक, पृथ्वी कायिक जीव  बनने का कारण, Reason to take birth in jal-kayik, agni-kayik and prithvi kayik jeev

हम जलकायिक, अग्निकायिक, पृथ्वी कायिक जीवों के बारे में जानते तो हैं परन्तु ये नही  जानते है कि कोई जीव किस कारण से अग्नि, पृथ्वी आदि काया वाला बन जाता है। इस स्वाध्याय को प्रतिदिन हम पढ़ेंगे और साथ ही इसमें लिखे हुए, एक एक वाक्य के साथ, अपना परीक्षण करते रहेंगे कि इसमें से कोई गलत व्यवहार हमारी आदत तो नहीं बन गया। यदि ऐसा मिलता है तो उस आदत को छोड़ने का प्रयास करना है। ये सूक्ष्म जीव भी हो सकता है, कभी हमारी तरह मनुष्य रहे हों और अज्ञानता में गलती करके इस तरह सूक्ष्म जीव बनकर पैदा हो गए। हम ये गलती न करें, इसलिए daily ये अभ्यास करना है। daily अभ्यास से ये याद होकर, हमारे चिन्तन में बना रहेगा।

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अभ्यास-14

14.-एक सप्ताह तक हम जल कायिक जीवों को धन्यवाद देंगे और उनसे क्षमा मांगने का अभ्यास करेंगे।

कहा जाता है जल ही जीवन है। हमारे जीवन में जल का कितना ज्यादा महत्व है हम जानते ही है। लेकिन हमारे कार्यों में जलकायिक जीवों को भी कष्ट पहुंचता है उसका हम अहसास नहीं कर पाते। इसलिए एक सप्ताह तक जब भी हम जल का प्रयोग करेंगे जलकायिक जीवों को धन्यवाद देते हुए उनसे क्षमा भी मांगेगे। ये अभ्यास हमें पुण्य अर्जित कराएगा और यदि पूर्व का कोई बहुत ही तीव्र अशुभ बंध नहीं होगा तो जल से संबंधित आपदा आदि से भी  रक्षा करेगा।


अभ्यास-13

13.-एक सप्ताह के लिए हम नीचे दिए गए स्वाध्याय को प्रतिदिन पढ़ेंगे।

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Importance of human life,मानव जीवन का महत्व

इसको पढ़कर हमें प्रतिदिन ये चिन्तन करना है। निगोद से निकलकर अनेक जन्मों में हम गए और कुछ तीव्र पुण्य किया होगा जो ये मनुष्य जन्म प्राप्त हुआ। क्या अब इस जन्म में हम ऐसे पुण्य कर रहे हैं कि हमें आगे के जन्मों में भी ये दुर्लभ मनुष्य जन्म मिले। इस स्वाध्याय को एक सप्ताह तक प्रतिदिन इसलिए पढ़ना है जिससे ये हमें याद हो जाए क्योंकि याद होने के बाद ही हमारा चिन्तन बन सकता है।


अभ्यास-12

12.-आज से एक सप्ताह तक हम दिन में तीन बार, किसी भी समय पृथ्वीकायिक जीवों को धन्यवाद देंगे और उनसे क्षमा मांगेंगे।

हमारे जीवन में, अनेक कार्यों से पृथ्वी कायिक जीवों को कष्ट पहुंचता है। जैसे हम जिस मकान में रहते हैं, बिल्डिंग में रहते हैं, जिस सड़क पर चलते हैं, इन सभी के निर्माण में पृथ्वीकायिक जीवों को पीड़ा पहुंचती है, और वे असहाय हो सब सहन करते हैं। पर कभी कभी भूकम्प के रूप में, उनकी पीड़ा, दुख का ज्वालामुखी जैसे फूट पड़ता है और धरती हिल जाती है। जब हम उनकी पीड़ा को समझेंगे, उनसे क्षमा मांगेंगे तो प्रकृति  भी भूकम्प जैसी आपदाओं से हमारी रक्षा करेगी। हमारी संस्कृति में भी प्रातः उठते ही धरती माता को नमन करने की प्रेरणा दी जाती है।

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अभ्यास-11

11.-एक सप्ताह तक प्रतिदिन नीचे दी गई list को पढ़कर अपना analysis करना है की हम कुछ गलत तो नहीं खा रहे।

 इस list में यह पता चलता है खाने पीने की कौनसी वस्तु किस अन्य वस्तु के साथ नही लेनी चाहिए। यदि हम इन दोनों वस्तुओं को साथ साथ लेते हैं तो वो हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती हैं।

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अभ्यास-10

10.-आज से एक सप्ताह तक हम प्रतिदिन रात्रि में सोने से पूर्व ये संकल्प लेंगे और भावना करेंगे ।

सोने से पूर्व नौ बार णमोकार मन्त्र मन ही मन में पढें और निम्नलिखित संकल्प लें:-

“मैं अब सोने के बाद से लेकर प्रात: उठने तक की अवधि के लिए मन-वचन-काय से यह नियम लेता हूँ या लेती हूं  कि–

(1) मैं चारों प्रकार के आहार (जल से लेकर ठोस पदार्थ) का त्याग करता हूँ।

(2) मैं इस शरीर से सम्बद्ध जो परिग्रह है उसे छोड़कर, अन्य सब परिग्रह का भी त्याग करता हूँ।

(3) मैं इस अवधि में श्रावक के पाँच अणुव्रतों का पालन करूँगा।

(4) मैं पाँचों पापों (हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह) का त्याग करता हूँ।

(5) मैं चारों कषायों (क्रोध, मान, माया, लोभ) और सभी प्रकार के राग द्वेष का त्याग करता हूँ। 

(6) संसार के सभी जीवों के प्रति मेरे क्षमा भाव व प्रेम भाव हैं, सभी जीव मुझसे प्रेम भाव और क्षमा भाव रखें ।

(7) संसार के सभी जीव सुखी रहें।

(8) संसार के सभी जीव निरोगी रहें।

 (9) संसार के सभी जीव सम्यक्त्व को धारण  कर, मोक्ष प्राप्त कर अनन्त सुख को प्राप्त करें ।


अभ्यास-9

9.-आज से एक सप्ताह तक हम प्रतिदिन इस प्रार्थना को बहुत ध्यान से, भावों के साथ पढेंगे।

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अभ्यास-8

8.-आज से एक सप्ताह तक जब भी हम किसी पशु, पक्षी या पेड़-पौधे को देखेंगे तो उसको णमोकार मन्त्र सुनाएंगे।

पशु पक्षी यदि दूर है तो मन में ही उनको देखकर धीरे धीरे णमोकार मंत्र पढ़ेंगे। ये जीव जब तक मोक्ष नही प्राप्त करता, अनेक भवों में भटकता रहता है। हो सकता है, ये पशु , पक्षी आदि भी कभी मनुष्य रहे हो और छल कपट, मायाचार के कारण, इनको ये तिर्यंच गति मिल गई हो। णमोकार मन्त्र के साथ हमें ये भावना भानी है कि इनको शीघ्र ही मनुष्य पर्याय मिले और इनका कल्याण हो।


अभ्यास-7

7.-इस सर्दी के मौसम में हम दोपहर 12 बजे से पहले की धूप में कम से कम 15 मिनट बैठेंगे।

प्रकृति का हमारे ऊपर बहुत उपकार है । ये हमें स्वस्थ बनाए रखने के लिए औषधि भी प्रदान करती है। ऐसी ही एक औषधि है- दोपहर 12 बजे से पहले की धूप। 12 बजे के बाद सूर्य की किरणें बदल जाती है। इसलिए सर्दी के मौसम में यदि कहीं धूप उपलब्ध है तो 12 बजे से पहले उसमें बैठना है और ये ध्यान रखना है धूप में स्वेटर पहन कर नही बैठना और न ही Glass window बंद करके धूप में बैठना है।। Direct धूप लेनी है। तभी ये औषधि रूपी उपहार हमें मिल सकेगा।


अभ्यास-6

6.-आज जब भी हमें आसमान दिखाई देगा,  हम सिद्धशिला पर विराजमान अनन्त सिद्ध परमेष्ठी भगवान  को "ॐ णमों सिद्धाणं" कहकर मन ही मन में नमस्कार करेंगे। 

दिन में अनेक बार ये practice हो जायेगी। फिर सोने से पहले अपना analysis करना है । कितनी बार हमने ये नमस्कार किया। आज के अतिरिक्त, बाकी दिन भी आप ये अभ्यास कर सकते हैं। ये छोटा सा अभ्यास एक तरफ हमारी आत्मा पर सिद्ध भगवान को स्मरण करने के अच्छे संस्कार बनायेगा और दूसरी तरफ चलते फिरते पुण्य अर्जित करायेग।


अभ्यास-5

5.-आज और कल हम कम से कम एक घड़ी (12 मिनट) सामायिक करने का अभ्यास करेंगे।

सामायिक में सभी आरम्भ परिग्रह का मन, वचन, काय से त्याग करके अपनी आत्मा के बारे में चिंतन करेंगे या फिर 12 भावनाओं का या किसी एक या दो भावना का चिन्तन करेंगे। आंखे बन्द करके ये चिंतन करना है। जैसे ही मन इधर उधर भागे एक सिपाही की तरह उसे पकड़कर फिर से चिंतन पर लायेंगे। एक तरह से चिंतन के साथ अपने मन की भी निगरानी करनी है।


अभ्यास-4

4.-दूसरों के लिए अच्छी भावना करने से अपने लिए शुभ कर्म का बंध होता है (good luck बनता है)। आज और कल हम ये अभ्यास करेंगे जो भी व्यक्ति हमें दिखाई देगा या हमें याद आयेगा, हम उसके लिए अच्छी भावना भाएंगे। 

जैसे कोई बीमार है तो ये भावना.. भगवान इसका स्वास्थ्य ठीक हो जाए। या कोई दुखी है तो इसका दुख दूर हो जाए, ऐसी भावना करनी है ।


अभ्यास-3

3.-पानी को कभी भी खड़े होकर नहीं पीना चाहिए।  इससे घुटनों में दर्द की problem हो जाती है। आज हम संकल्प लेंगे कि पानी बैठकर ही पियेंगे। आज और कल के लिए संकल्प लेंगे और बाकी दिन इसका अभ्यास करेंगे।

अभ्यास-2

2.-प्रतिक्रमण द्वारा जाने अनजाने में हुए अशुभ कार्यों और गलतियों से होने वाले अशुभ कर्म बंध का क्षय होता है। आज और कल हम इस लघु प्रतिक्रमण  को भाव सहित पढ़ेंगे।

लघु प्रतिक्रमण

हे भगवन,हे जिनेंद्र देव,हे अरिहंत प्रभु,

मैं अपने पापों से मुक्त होने के लिए प्रतिक्रमण करता हूं।हे भगवन,मैं सर्व अवगुणों से संपन्न हूं।मैंने मन वचन काय की दुष्टता से ना जाने कितने अपराध किए हैं। हे भगवन आप तो केवलज्ञानी है मेरे सब पापों को आप जानते हैं, आपसे कुछ भी छिपा नहीं है, मैं सभी जीवो से क्षमा चाहता हूँ , सभी जीव मुझे क्षमा प्रदान करें। मेरी किसी के साथ शत्रुता नहीं है, यदि मैंने राग द्वेष आदि परिणामों से पाप किया हो, कर्कश वचन कहे हो, यदि मैंने उठने-बैठने, खांसने- छींकने, बोलने आदि से जीवो का घात किया हो, यदि मैंने त्रसकायिक या स्थावर जीवों की हिंसा की हो, पर स्त्री या पर पुरुष को बुरी निगाहों से देखा हो, अपने व्रतों और नियमों में दोष लगाया हो, अष्ट मूलगुणों के पालन में एवं सप्त व्यसन त्याग में दोष लगाया हो ,सच्चे देव, शास्त्र,गुरु और मुनि आर्यिका, श्रावक व श्राविका की निंदा, आलोचना की हो तो, हे भगवान, मेरे सारे पाप कर्म दोष मिथ्या हो, मेरा समाधि मरण हो एवं अन्तिम समय तक सच्चे देव, शास्त्र, गुरु की भक्ति में मन लगा रहे, ऐसी मेरी भावना है।

(9 बार णमोकार मंत्र का जाप करें।)


अभ्यास-1

1.-आज हम भोजन करते समय मौन रखेंगे और भोजन करते समय tv या mobile नहीं देखने का अभ्यास करेंगे।


Author -Spring Season

Rating: 5 out of 5.

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10 Comments

  1. रोज प्रतिक्रमण करेंगे।।मौन से भोजन का अभ्यास करना चाहिए ‌।

  2. आकाश की तरफ देख कर सिद्ध भगवन्तों को नमस्कार करेंगे।ऐसा‌ अपने स्मरण में रखने का अभ्यास करेंगे। बहुत ही अच्छा चिंतन।

  3. संकल्प १७, अप्रैल २३। बहुत ही अच्छे सच्चे भाव विशुद्धि बढ़ाने के लिए।

  4. बहुत ही अच्छा लगा जितने नियम याद आ देखें पढ़ने के बाद सभी कापालन करुंगी 🙏🏽🙏🏽🇮🇳😌

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