अक्षय तृतीया

अक्षय तृतीया पर्व महान

अक्षय तृतीया का पर्व महान,
शुरू हुआ इस दिन आहार दान ।

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भगवान आदिनाथ ने किया कठिन तप,
फिर आहारचर्या के लिए विधि का मन में लिया संकल्प ।

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मुनि अवस्था में भगवान आदिनाथ ने आहार चर्या हेतु  नगर में किया विहार,
पर छ: मास तक रहे निराहार ।

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श्रावक थे उस समय आहार विधि से अनजान,
हो न सका इसलिए आहार दान  ।

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पूर्व भव के ज्ञान से राजा श्रेयांस ने तब आहार विधि को जाना,
मुनिराज आदिनाथ भगवान को इक्षु रस ग्रहण कराकर अपने को धन्य माना।

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इसी दिन से आहार दान की परम्परा शुरू हुई,
गुरुओं को आहारदान से श्रावकों की जिंदगी भी धन्य हुई ।

—-Written by Spring Season

क्यों होता है आज भी नारी का अपमान ?

क्यों होता है आज भी नारी का अपमान ?

स्त्री पुरुष दोनों का है महत्व समान,

क्यों होता है आज भी नारी का अपमान ?

जन्म के समय बेटे की चाह करे,

बेटी के जन्म लेने पर आह भरे,

कभी गर्भ में उसके जीवन को हरे,

भेदभाव बेटी के साथ करने से ना डरे,

बेटी के महत्व को भूल जाता है इन्सान,

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क्यों होता है आज भी नारी का अपमान ?

युवावस्था में वो बदसलूकी और छेड़छाड़ सहे,

शर्म और इज्जत के कारण कुछ न कहे,

कार्यक्षेत्र में भी असुरक्षा की भावना बहे,

गाँव या शहर, कहीं भी सुरक्षित ना रहे,

कानून व्यवस्था ना बचा सके उसका स्वाभिमान,

क्यों होता है आज भी नारी का अपमान ?

..

शादी के बाद दहेज की बलि चढ़ायें,

घरेलू हिंसा की भी उसे शिकार बनायें,

बन्धन की बेड़ियाँ पैरों में पहनाएं,

मानसिक उत्पीड़न कर उसे सताएं,

इन्सानियत छोड़ कुछ लोग बनते हैं हैवान,

क्यों होता है आज भी नारी का अपमान ?

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नवजात बच्चियाँ छोड़ी जाती हैं समझकर भार,

चंद रुपयों में बेचीं जाती हैं करके तिरस्कार,

छोटी उम्र में ही दुष्कर्म का होती हैं शिकार,

जीवन में सहती रहती हैं अनेकों अत्याचार,

समाज में नारी को मिला न उचित सम्मान,

क्यों होता है आज भी नारी का अपमान ?

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मच्छर बोला आदमी से

मच्छर बोला आदमी से

 

बरसात के मौसम में,

मच्छर ने अपना मुँह खोला,

और आदमी से इस तरह बोला—

मै तेरा खून पी जाऊँगा,

तेरे कान में बेसुरा संगीत बजाऊँगा,
डेंगू, मलेरिया से तुझे डराऊँगा,चैन की नींद से तुझे जगाऊँगा,
तेरे घर में भी अपना कुनबा बढ़ाऊँगा,
मौका मिलते ही तुझे काट खाऊँगा, 

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आदमी ने मच्छर के बोल को सहा,

और फिर मच्छर से कहा —–

मेरा खून तो पहले ही समस्याओं ने पिया,

प्रदूषण ने मेरा बैंड बजा दिया,

कोरोना  के भय ने जीना मुश्किल किया,

चिन्ता और तनाव ने नींद को लूट लिया | 

अब तू भी आ जा मुझे और दुखी करने को,

प्रदूषण, समस्याओं और कोरोना का साथी बनने को,

अपने डंक के जहर से मुझे सताने को, 

बीमारियों का उपहार देकर मुझे रुलाने को, 

मेरा खून पीकर बेशक तू अपना पेट भर,

पर बीमारियों को न मुझे ट्रांसफर कर,

धोखे और स्वार्थ की ऐसी नीति से डर,

वरना रुक सकता है तेरा भी सफर,

न मुझे बीमारियों से डरा, न खुद भाग इधर-उधर,

मुझे भी चैन से जीने दे, खुद भी देख ले जीकर |

 

Protect Trees, Save Earth

Protect Trees, Save Earth

Love plants and trees,

As they make air clean and pollution free

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They provide us fruits and food grain,

without trees, life is like a body without brain.

They are invaluable gifts of nature,

They seem like a profit without expenditure

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Benefits of trees are uncountable for human life,

A person can’t repay it, even during his whole life.

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Treat trees as a true friend,

protect them else human life will come to an end

पिता का वर्णन कैसे करूँ

पिता का वर्णन कैसे करूँ

रेगिस्तान में झील और तालाब है पिता

समुद्र में पानी का जहाज है पिता,

अपने बच्चों का पालनहारा है पिता,

परिवार रुपी नाव का खेवनहारा है पिता |

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भयंकर गर्मी में वृक्ष की ठंडी छाया है पिता,

कड़कती ठंड में सुनहरी धूप की माया है पिता |

तेज बरसात में छतरी जैसा सहारा है पिता,

बसन्त ऋतु में खिलते फूलों जैसा नज़ारा है पिता |

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संस्कारों की पाठशाला है पिता,
आदतों, गुणों की कार्यशाला है पिता|
सुरक्षा देने वाला किला है पिता,
मुश्किल में काम आने वाला हौसला है पिता |

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जिन्दगी की कठिन राह में साथ चलता साया है पिता,

जीवन के हर क्षण में समाया है पिता |

पिता का वर्णन करने बैठो तो शब्द कम पड़ जाते हैं,

पिता की महानता के आगे मस्तक स्वयं झुक जाते हैं |

दुख के काँटे

दुख में सुख की बहुत याद आती है,
धैर्य और साहस की परीक्षा हो जाती है।
आग में तपकर ही सोने में चमक आती है,
दुख को सहकर ही किस्मत को चुनौती दी जाती है।

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दुख सुख का महत्व समझा जाता है,

दूसरों के दर्द का भी अहसास करा जाता है।

दुख शत्रु और मित्र की पहचान करा देता है,

अपने और पराये की परख बता देता है।

सुख छिनने का हमेशा डर लगा रहता है,
दुख में व्यक्ति इस बात से निर्भय बना रहता है।
सुख जाता है तो दुख दे जाता है,
दुख जाता है तो सुख दे जाता है।

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पतझड़ के बाद बसन्त की बहार भी आती है,

तपती गर्मी के बाद मानसून की बौछार भी आती है।

अँधेरी रात के बाद उजाले की भोर भी आती है,

दुख और कष्टों के बाद सुख की झंकार भी आती है।

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उजाले के बिना जीवन में अँधेरा हो जाता है,
पर अँधेरा ही उजाले का महत्व समझाता है।
सुख  दुख जीवन के साथ चलते हैं,
फूलों के साथ कांटे भी मिलते हैं।

उपकार के बदले अत्याचार -(कविता-पर्यावरण दिवस)

पर्यावरण हमेशा रहा है हमारा मित्र,

पर हमने बिगाड़ दिया है उसका चित्र |

पर्यावरण ने मनुष्य को दिया प्राकृतिक सम्पदा का उपहार,

पर बदले में मनुष्य ने पर्यावरण पर किया अत्याचार |

मनुष्य ने अपने स्वार्थ में पर्यावरण की धरोहर का किया तिरस्कार,

इसकी वजह से आज मनुष्य खुद हो रहा है बेबस और लाचार ।

पर्यावरण ने हमें दिया नदियों, झरनों, झीलों का शुद्ध पानी,

पर हमने उसको प्रदूषित करके कर डाली अपनी ही हानि ।

नदियों को नाला बना दिया, भूमिगत जल को सुखा दिया,

मनुष्य के अन्धे स्वार्थ ने उसे पीने के शुद्ध पानी को भी तरसा दिया ।

पर्यावरण के आभूषण – पेड़ों, वनों, जंगलों को काट दिया गया,

सांस लेने के लिए मिली हवा को भी जहरीला बना दिया गया ।

प्राकृतिक संसाधनों का अनुचित दोहन किया गया,

भ्रष्टाचार के खेल में पर्यावरण को भुला दिया गया ।

विभिन्न जीव जन्तु भी हैं पर्यावरण के अंग,

पर बढ़ते प्रदूषण ने उनका जीवन किया बेरंग ।

गौरैया, गिद्ध, अन्य  पक्षी,जलीय जन्तु समाप्ति की ओर हैं अग्रसर,

मनुष्य भी इसके प्रभाव से नहीं है बेअसर ।

पर्यावरण का सन्तुलन यदि ऐसे ही बिगड़ता रहेगा,

मनुष्य के जीवन पर भी इसका कुप्रभाव पड़ता रहेगा ।

आज पीने को शुद्ध पानी नहीं, सांस लेने को स्वच्छ हवा नहीं,

प्रदूषण से मनुष्य को ऐसे रोग मिले, जिनकी दवा नहीं ।

पर्यावरण  का नुकसान और  शोषण रुकना चाहिए,

पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सभी को जागरूक होना चाहिए ।

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नम्र निवेदन —

चिलचिलाती गर्मी में पशु पक्षी भी हैं बेहाल और प्यास से व्याकुल,

अपनी बालकनी, छत,  गली आदि में पानी का बर्तन रखकर

असहाय जीवों की जान बचाएं ।

जीव दया कर अक्षय पुण्य कमायें           ——- धन्यवाद