अभ्यास एवं संकल्प -(2)

अभ्यास एवं संकल्प-(2)

छोटे से नियम और अभ्यास हमारे जीवन के लिए बहुत उपयोगी हो जाते हैं । ये एक तरफ हमारे आध्यात्मिक विकास में सहायक होते हैं, तो दूसरी तरफ हमारी health के लिए भी लाभदायक होते हैं। इन छोटे से अभ्यासों के द्वारा हमारा अच्छा भाग्य( good luck); भी बनता है और साथ ही मन भी प्रसन्न होता है।

समय समय पर इस page पर , जीवन के लिए महत्वपूर्ण नए संकल्प (resolutions) और अभ्यास (practice) update होते रहेंगे।

.


9-Aug-2023

1. -स्वाध्याय को याद रखने का अभ्यास

हम सभी के साथ एक समस्या आती है कि हम गुरुजन के प्रवचन सुनते है, ग्रंथों से स्वाध्याय भी करते हैं, लेकिन उसको, उसी दिन कुछ समय बाद भूल जाते हैं । गुरुजन के प्रवचन और स्वयं स्वाध्याय करके प्राप्त हुआ ज्ञान हमें याद रहे। इसके लिए हम एक सप्ताह के लिए ये अभ्यास करेंगे—  एक दिन में हमने जो भी ज्ञान प्राप्त किया, चलते फिरते, कोई भी कार्य करते उसे मन में बार-बार याद करने का अभ्यास करेंगे। 

इस अभ्यास से हमें स्वाध्याय को याद रखने और चिन्तन करने की आदत बन जाएगी।

स्वाध्याय के लिए पुस्तक

श्रुत पंचमी पर्व (शास्त्रों का जन्मदिन)

जिनवाणी लिखे शास्त्रों का जन्मदिन

श्रुत पंचमी पर्व

1

श्रुत पंचमी पर्व

.

2

.

3

Shrut Panchami Parv, श्रुत पंचमी का महत्व, शास्त्रों की सुरक्षा

.

4

Shrut Panchami, श्रुत पंचमी के दिन हमारा कर्तव्य

.

लेखन और hand writing—श्री बसन्त लाल जैन (पूर्व प्राचार्य)

श्रुत पंचमी

श्रुत पंचमी जैन पर्व है पावन, 

पूर्ण हुआ इस दिन प्रथम जैन ग्रन्थ का लेखन

📖 📝 📖

भगवान महावीर के उपदेश और वाणी को आचार्यों ने मौखिक स्मरण किया,

मौखिक ज्ञान के बल पर ही आचरण में उतार लिया ।

🌹🌹🌹🌹🌹

पर काल के प्रभाव से स्मरण शक्ति कम होनी शुरू हुई,

तब आचार्य धरसेन को भगवान की वाणी सुरक्षित करने की चिंता हुई ।

🌺

आने वाले जीवों के कल्याण की भावना हुई,

भगवान की वाणी उन तक पहुँचाने की समस्या खड़ी हुई ।

❓

तब उन्होंने अपने दो शिष्यों, मुनि भूतबलि व मुनि पुष्पदंत को 

भगवान की वाणी लिखने का आदेश दिया,

🍁

आज के ही दिन दोनों शिष्यों ने ‘ षटखंडागम ‘ ग्रन्थ 

की रचना कर इस कार्य को पूर्ण किया ।

💐📖💐

इस दिन से नए नए ग्रन्थों की रचना शुरू हुई,

ग्रन्थों के रूप में भगवान की वाणी सुरक्षित हुई ।

📚📕

ग्रन्थों व शास्त्रों को पढ़कर हमने भगवान की वाणी को जाना,

अपने जैन धर्म और जीव दया को पहचाना ।

🌷

इस दिन शास्त्रों और ग्रन्थों की पूजा की जाती है,

उनकी सुरक्षा और विस्तार की शपथ ली जाती है ।

📖

—-Written by Spring Season

श्रुत पंचमी का पावन पर्व

अक्षय तृतीया

अक्षय तृतीया पर्व महान

अक्षय तृतीया का पर्व महान,
शुरू हुआ इस दिन आहार दान ।

🌷

भगवान आदिनाथ ने किया कठिन तप,
फिर आहारचर्या के लिए विधि का मन में लिया संकल्प ।

🍁

मुनि अवस्था में भगवान आदिनाथ ने आहार चर्या हेतु  नगर में किया विहार,
पर छ: मास तक रहे निराहार ।

🌺

श्रावक थे उस समय आहार विधि से अनजान,
हो न सका इसलिए आहार दान  ।

🌼

पूर्व भव के ज्ञान से राजा श्रेयांस ने तब आहार विधि को जाना,
मुनिराज आदिनाथ भगवान को इक्षु रस ग्रहण कराकर अपने को धन्य माना।

🎋

इसी दिन से आहार दान की परम्परा शुरू हुई,
गुरुओं को आहारदान से श्रावकों की जिंदगी भी धन्य हुई ।

—-Written by Spring Season

कर भला तो हो भला

दूसरे का भला किया तो अपना भी भला हुआ

एक दिन परिका की friend कनिका उसके घर आई हुई थी। मार्च का महीना था। तभी बहुत तेज बारिश होने लगी। यह देखकर पारिका बोली.. कनिका देखो ना, मार्च में कितनी बारिश हो रही है जबकि इस बार सर्दी के मौसम में सूखा ही रहा।


कनिका— हां इस बार नाम की ही बारिश हुई दिसंबर में और फरवरी में तो इतनी गर्मी आ गई कि पंखे भी चलाने पड़ गए।


परिका— ऐसा लग रहा है, जो सर्दी फरवरी में आनी चाहिए थी, अब मार्च  में आ गई है।


कनिका— मैंने तो अपने स्वेटर भी उठा कर रख दिए थे। अब दोबारा से निकालने पड़े। पारिका.. हां मैंने भी, अब पता नहीं कैसा मौसम हो रहा है, सुबह को स्वेटर पहनने पड़ रहे हैं, दोपहर को पंखा चल जाता है और रात को ठंड हो जाती है तो  कम्बल ओढ़ना पड़ता है।


कनिका— आज के समय में मौसम को भी समझना बड़ा मुश्किल हो गया है।


परिका— जैसे इन्सान रंग बदलता है वैसे ही मौसम भी बार-बार रंग बदल रहा है।

कनिका हंसते हुए.. लगता है, मौसम पर भी मनुष्य की संगति का असर हो गया है।


पारिका—  हा हा हा हंसते हुए, कनिका सही कह रही हो, पर मुझे किसानों के लिए बहुत दुख हो रहा है। उनकी गेहूं की फसल कटने को तैयार थी। अब daily यह तेज बारिश और तूफान के कारण उनकी फसल का बहुत नुकसान हो गया है।


कनिका—.यह बारिश यदि दिसम्बर में आती तो किसानों की फसल को लाभ होता। विज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली पर बेचारे किसानों के लिए इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकल पाया कि उनकी फसल मौसम के भरोसे ना रहती।


परिका—  उनके लिए तो फसल investment  की तरह होती है। फसल नष्ट हो जाती है तो उससे होने वाली income भी नष्ट और साथ ही investment भी नष्ट हो जाती है।

बेमौसम वर्षा से फसल का नुकसान
source-दैनिक जागरण


कनिका—यह सोचकर मुझे भी बहुत दुख होता है। वैसे एक positive कार्य हुआ है  कि सरकार ने इस तरह की आपदा में फसल को होने वाले नुकसान के भुगतान के लिए, फसल सुरक्षा बीमा ऐसी कोई योजना शुरू कर दी है । इससे पहले तो किसानों के लिए ऐसी आपदा के समय बहुत ज्यादा मुश्किल हो जाती थी।


परिका—हां, इस बीमा योजना से उन्हें सपोर्ट तो मिल जाएगा पर फिर भी मैं तो यही प्रार्थना करती रही, हे वर्षा !अभी मत आओ। किसानों की फसल कट जाए, तब आ जाना।


कनिका—परिका तुम बहुत दयालु हो।

परिका—कनिका, वह तो तुम भी हो। हां, मैंने एक अच्छी खबर पढ़ी न्यूज़पेपर में। कुछ किसानों ने इस बार पराली को जलाया नहीं बल्कि मेहनत करके और कुछ लागत लगाकर, अपने खेतों की मिट्टी में उस पराली को मिला दिया, गेहूं का बीज बोने से पहले। और देखो ये चमत्कार हुआ कि वहां पर  बहुत बारिश, तूफान, ओलावृष्टि हुई पर उनकी फसल नष्ट होकर, जमीन पर नहीं गिरी। उनके खेतों में पानी  भी भर गया लेकिन मिट्टी में पराली मिली होने के कारण, फसल की जड़े मजबूत रही और फसल इस आपदा में भी सुरक्षित रही।


कनिका—अरे वाह परिका, ये तो तुमने बहुत अच्छी खबर सुनाई। पराली जलाने से तो बहुत ज्यादा वायु प्रदूषण हो जाता है। पराली जलने से पैदा हुआ धुआं, जब हवा के साथ दूर के शहरों में पहुंचता है तो लोगों का सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है।


परिका—हमारे यहां  भी तो कितनी घुटन हो जाती है कनिका, दिवाली से पहले पराली के धुएं के कारण। इतना वायु प्रदूषण हो जाता है कि घर से बाहर निकलना भी कठिन हो जाता है। देखो तो कुदरत या प्रकृति का परोपकार, जिन किसानों ने प्रकृति के लिए सोचा, उसकी स्वच्छ वायु को  पराली जला कर प्रदूषित नहीं किया और अन्य मनुष्यों के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा। प्रकृति ने उनका भी ध्यान रखा। इतने संकट में जहां दूसरे किसान मुश्किल में आ गए। वहीं इन किसानों की फसलें खेत में खड़ी, पहले की तरह मुस्कुरा रही हैं।

.

पराली का उपयोग, Use of Parali
source-दैनिक जागरण


कनिका—शायद इसे ही कहते हैं, कर भला तो हो भला। 


परिका— बिल्कुल, किसी का भी भला करने का, अच्छा ही फल मिलता है। भले ही वह तुरन्त मिले या कुछ समय बाद मिले, उसका हमें पता चले या पता भी ना चले, पर अच्छा फल किसी ना किसी रूप में अवश्य मिलता ही है।


कनिका —-मुझे भी ऐसा ही लगता है,जैसे पराली न जलाने वाले किसानों को भी अपने अच्छे कार्य का अच्छा फल ही मिला।


परिका—हां कनिका, इसलिए हमें जब भी अवसर मिले भलाई के कार्य करते रहना चाहिए।


कनिका—हां बिल्कुल सही कहा परिका तुमने। मैं भी इस बात का ध्यान रखूंगी।

—Written by Spring Season

जीवन के दो हैं किनारे

जीवन के दो हैं किनारे

जन्म और मृत्यु, जीवन के दो हैं किनारे,

जीवन की नैया चलती है साँसों के सहारे ।

.

जीवन का हर पल है कीमती,

मृत्यु जीवन के चारों ओर घूमती,

जीवन की यात्रा धीरे धीरे आगे बढ़ती,

सुख दुःख संघर्षों को अपने में समेटती,

पुण्य पाप सुख दुःख सभी हैं हमारे,

जीवन की नैया चलती है साँसों के सहारे ।

बहुत मुश्किल से मिलता है मनुष्य जन्म,

अनेक जन्मों में घुमाते हैं अपने ही कर्म ।

मनुष्य जन्म अनमोल, नहीं इसमें कोई भरम,

मानवीय गुणों को पाना ही अपना है धर्म ।

धैर्य, संयम, सत्य, साहस जीवन के सितारे,

जीवन की नैया चलती है साँसों के सहारे ।

.

समय आगे बढ़ता रहता है निरन्तर,

बचपन, जवानी, बुढ़ापा आते हैं कालान्तर ।

खेल, पढाई, रोज़गार में समय बीते अधिकतर,

जन्म से मृत्यु तक आते हैं बहुत अन्तर ।

परोपकार और भलाई से जीवन को संवारे,

जीवन की नैया चलती है सांसों के सहारे ।

भाग्य और पुरुषार्थ है जीवन की धुरी,

जीवन का कोई लक्ष्य बनाना है जरूरी,

पुण्य कार्यों से दूर रहने की न हो मजबूरी,

अच्छा इन्सान बने बिना जीवन की यात्रा है अधूरी,

अपने मनुष्य जन्म को व्यर्थ न गंवां रे ,

जीवन की नैया चलती है साँसों के सहारे ।

—Poem by Spring Season

 

दुख और गुस्सा कैसे बदला खुशी और संतोष में

 

 परिका की बचपन की friend सुरीली अब बंगलुरु में रहती थी। बचपन से ही सुरीली का सपना था कि वह किसी बड़ी कंपनी में किसी बड़े पद पर काम करें। talented तो सुरीली बहुत थी ही, जल्दी ही उसका यह सपना पूरा हो गया। छोटी उम्र में ही उसको बंगलुरु में आईटी कंपनी में जॉब मिल गया और अपने talent और लगन से, कम समय में ही, वो अपनी कंपनी में ऊंचे पद पर भी आ गई। अब उसके पास बहुत  सैलरी पैकेज के साथ अपनी गाड़ी भी थी। उसका मन था जल्दी से अपना एक फ्लैट भी ले लूं।
 
  कुछ दिन पहले सुरीली अपनी friend परिका से मिलने के लिए उसके शहर आई। परिका ने अपनी दूसरी friend कनिका को भी बुला लिया। तीनों आपस में मिलकर बातें करके, पुरानी यादों को ताजा कर, बहुत खुश हुई। एक दिन तीनों ने घूमने का प्रोग्राम बनाया।Amusment park गई, फिर PVR में मूवी देखी और बाद में मॉल में जाकर ढेर सारी शॉपिंग भी कर लाई।
शाम को तीनों घर आई तो थक गई थी। परिका की मम्मी ने सभी के लिए चाय बनाई और वह भी बैठ कर उनके साथ बातों में व्यस्त हो गई। बातों के बीच में ही परिका की मम्मी ने सुरीली से कहा– तुमने तो छोटी उम्र में ही इतना बड़ा सैलरी पैकेज पा लिया। तुम्हें तो किसी चीज की कमी नहीं होगी, बड़ी भाग्यशाली हो तुम।
 
यह सुनते ही सुरीली दुखी हो गई और बोली – आंटी सब लोग मुझे ये ही कहते हैं और देखो, सब को मेरा सैलरी पैकेज तो दिखता है कि 27 लाख का पैकेज है पर किसी को यह नहीं दिखता मुझे इसमें से 30% तक income tax में देना पड़ता हैं। Tax saving स्कीम में invest करने के बाद भी मुझे 5 लाख का टैक्स देना ही पड़ता है।
बहुत गुस्सा आता है मुझे, मन दुखी होता है। मैं मेहनत करती हूं और मेरी मेहनत का फल किसी और को देना पड़ता है। मन में घुटन होती है, पर क्या करूं, देना पड़ता है।
परिका यह सब सुन रही थी,थोड़ा मुस्कुरा कर बोली– सुरीली क्या दुनिया में टैक्स केवल तुम्हे ही  देना पड़ता है किसी और को नहीं देना होता।
 सुरीली चिढ़कर बोली– मुझे इससे मतलब नहीं, किसको देना होता है, किसको नहीं, बस मुझे मेरी कमाई का इतना बड़ा अमाउंट, बिना अपनी मर्जी के टैक्स में देना होता है, मुझे उससे गुस्सा आता है।
यह सुनकर परिका गंभीर होकर बोली– जब तुम्हे इतना बड़ा amount देना ही होता है तो तुम उसको टैक्स की तरह मत दो, बल्कि अपनी मर्जी से इस amount का त्याग कर दो। 
सुरीली को गुस्सा आ गया – यह क्या बात हुई, वही तो हो रहा है, मेरा पैसा तो जा ही रहा है ना।
.
 
परिका समझाते हुए बोली– नहीं,सुरीली दोनों में अंतर है। बिना मर्जी के, जब तुम उस बड़े amount को टैक्स का बोझ समझ कर दे रही हो तो तुम्हारा मन दुखी होता है। पर यदि तुम इस amount को, यह सोचकर त्याग कर दोगी कि मैंने इसे दान कर दिया तो तुम्हारा मन खुश होगा कि मैंने इतना बड़ा दान किया, मैं इस योग्य हूं कि मैं इतना बड़ा दान कर सकती हूं। फिर देखो तुम्हें अपने ऊपर गर्व होगा।
 
सुरीली को परिका की बात में थोड़ा दम नजर आया। कुछ सोचकर बोली– हां, दोनों सोच में अंतर तो नजर आता है।
परिका आगे बोली– इससे एक और लाभ तुम्हें मिलने वाला है।
.
अब दोनों गंभीरता से बात करने लगी
 सुरीली–कैसा लाभ?
 परिका–इससे तुम्हें दान करने का पुण्य  मिलेगा।
 सुरीली–उस से क्या होगा ?
परिका– उस पुण्य से यह दान कभी ना कभी, किसी भी जन्म में दोगुना, चौगुना होकर, तुम्हारे पास लौटकर आएगा, मतलब ऐसा भाग्य तुम्हारा बनेगा और वह भाग्य तुम्हें आगे के जीवन या जन्मों में भी धनवान बनाकर रखेगा।
सुरीली– अच्छा, ऐसा भी होता है?
 
परिका – हां, अच्छे कार्य का अच्छा फल, हो सकता है तुरंत ना मिले पर वह कभी ना कभी, किसी भी समय, भले ही अगले जन्म में मिले पर मिलता जरूर है और किसी भी रूप में हमारे सामने आ जाता है। बस हमें पता नहीं चलता कि ये उस कार्य का अच्छा फल मिला, हमें इस रूप में।
 अब देखो, सब लोग तुम्हें भाग्यशाली कहते हैं, इतने बड़े सैलरी पैकेज के लिए तो तुमने किसी जन्म में खूब बड़ा दान किया होगा, उसका ही यह फल हुआ कि तुम्हें छोटी उम्र में ही इतनी टैलेंट आ गई और इतना बड़ा सैलरी पैकेज मिल गया।
सुरीली कुछ सोचने लगी और बिल्कुल चुप हो गई। उसके साथ बाकी लोग भी चुप हो गए। एकदम सन्नाटा हो गया।
 कनिका कुछ देर बाद बोली– क्या हुआ सुरीली? तुम्हे पारिका की बातें  बातें व्यर्थ लगी क्या? जो तुम चुप हो गई। कुछ बुरा लग गया क्या?
सुरीली मुस्कुरा कर बोली –अरे बुरा नहीं लगा बल्कि एक अनमोल gift मिल गया।
कनिका ने पूछा– गिफ्ट कैसा?
    .
 सुरीली – अरे अनमोल गिफ्ट, इसको तो मैं कभी नहीं भूलूंगी। मॉल से परिका ने मेरे लिए जो गिफ्ट खरीदे  हैं, इनकी बात नहीं कर रही बल्कि जो बात उसने मुझे आज बताई, जब मैंने उस पर अभी सोचा तो उसको मैं गिफ्ट कह रही हूं। मुझे अब अच्छा लग रहा है। अब मुझे टैक्स देते हुए  गुस्सा नहीं आएगा बल्कि खुशी मिलेगी और असंतोष की जगह यह संतोष कि मैं आगे के लिए अपना ही अच्छा भाग्य इस तरह बना लूंगी। सच में, मेरा यहां आना सफल हो गया। पूरे दिन के घूमने, मौज मस्ती में इतनी खुशी नहीं मिली जितना की परिका की इस बात को सोचकर मुझे  मिल रही है।
 
दो  दिन बाद सुरीली अपनी जॉब पर वापस अपने शहर चली गई। कुछ दिन बाद फोन करके परिका से बोली– परिका, इस साल मैंने अपनी मर्जी से बहुत बड़ा amount दान कर दिया है और दान करके बहुत संतोष मिल रहा है। परिका तुमने तो मेरे गुस्से और दुख को खुशी और संतोष में बदल दिया।
——-story written by spring Season
 

Rating: 5 out of 5.

क्यों होता है आज भी नारी का अपमान ?

क्यों होता है आज भी नारी का अपमान ?

स्त्री पुरुष दोनों का है महत्व समान,

क्यों होता है आज भी नारी का अपमान ?

जन्म के समय बेटे की चाह करे,

बेटी के जन्म लेने पर आह भरे,

कभी गर्भ में उसके जीवन को हरे,

भेदभाव बेटी के साथ करने से ना डरे,

बेटी के महत्व को भूल जाता है इन्सान,

.

क्यों होता है आज भी नारी का अपमान ?

युवावस्था में वो बदसलूकी और छेड़छाड़ सहे,

शर्म और इज्जत के कारण कुछ न कहे,

कार्यक्षेत्र में भी असुरक्षा की भावना बहे,

गाँव या शहर, कहीं भी सुरक्षित ना रहे,

कानून व्यवस्था ना बचा सके उसका स्वाभिमान,

क्यों होता है आज भी नारी का अपमान ?

..

शादी के बाद दहेज की बलि चढ़ायें,

घरेलू हिंसा की भी उसे शिकार बनायें,

बन्धन की बेड़ियाँ पैरों में पहनाएं,

मानसिक उत्पीड़न कर उसे सताएं,

इन्सानियत छोड़ कुछ लोग बनते हैं हैवान,

क्यों होता है आज भी नारी का अपमान ?

.

नवजात बच्चियाँ छोड़ी जाती हैं समझकर भार,

चंद रुपयों में बेचीं जाती हैं करके तिरस्कार,

छोटी उम्र में ही दुष्कर्म का होती हैं शिकार,

जीवन में सहती रहती हैं अनेकों अत्याचार,

समाज में नारी को मिला न उचित सम्मान,

क्यों होता है आज भी नारी का अपमान ?

Rating: 4.5 out of 5.

दूसरों के लिए अच्छी भावना करने का अपने पर क्या प्रभाव पड़ा 

जिन्दगी का मूल्य

जिन्दगी का मूल्य 


कानों में इयरफ़ोन लगाकर सड़कों और रेलवे लाइन पर,

चलते हुए अपनी जान क्यों गंवाते हैं लोग ?

शादी की खुशी में लापरवाही से फायर कर,

खुशी के माहौल को गम में क्यों बदल डालते हैं लोग ?

गाड़ियों को तेज रफ़्तार से दौड़ा कर,

अपनी और दूसरों की जान क्यों ले डालते हैं लोग ?

दिन रात ये खबरें आती हैं फिर भी,

क्यों नहीं सावधान और जागरूक हो पाते हैं लोग ?

अपनी और दूसरों की जिन्दगी छीन कर,

अनेक घरों और परिवारों में अँधेरा क्यों कर जाते हैं लोग ?

गुस्से में नियंत्रण खो कर,क्यों दूसरों की हत्या कर देते हैं लोग ?

निराशा और तनाव में आत्महत्या कर,

क्यों अपना मनुष्य जीवन खो देते हैं लोग ?

शराब के नशे में गाड़ी चलाकर,

अनेकों जिंदगियों को क्यों लील जाते हैं लोग ?

ड्राइविंग सीट पर बैठ कर, क्यों सो जाते हैं लोग ?

भागदौड़, जल्दी – जल्दी, इस जल्दबाजी में,

क्यों जानें दाँव पर लगाते हैं लोग ?

समय तो किसी के लिए नहीं ठहरता,

पर समय की जल्दी में,जिन्दगी के समय को

हमेशा के लिए क्यों ठहरा जाते हैं लोग ?