छोटे से नियम और अभ्यास हमारे जीवन के लिए बहुत उपयोगी हो जाते हैं । ये एक तरफ हमारे आध्यात्मिक विकास में सहायक होते हैं, तो दूसरी तरफ हमारी health के लिए भी लाभदायक होते हैं। इन छोटे से अभ्यासों के द्वारा हमारा अच्छा भाग्य( good luck); भी बनता है और साथ ही मन भी प्रसन्न होता है।
समय समय पर इस page पर , जीवन के लिए महत्वपूर्ण नए संकल्प (resolutions) और अभ्यास (practice) update होते रहेंगे।
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9-Aug-2023
1. -स्वाध्याय को याद रखने का अभ्यास
हम सभी के साथ एक समस्या आती है कि हम गुरुजन के प्रवचन सुनते है, ग्रंथों से स्वाध्याय भी करते हैं, लेकिन उसको, उसी दिन कुछ समय बाद भूल जाते हैं । गुरुजन के प्रवचन और स्वयं स्वाध्याय करके प्राप्त हुआ ज्ञान हमें याद रहे। इसके लिए हम एक सप्ताह के लिए ये अभ्यास करेंगे— एक दिन में हमने जो भी ज्ञान प्राप्त किया, चलते फिरते, कोई भी कार्य करते उसे मन मेंबार-बार याद करने का अभ्यास करेंगे।
इस अभ्यास से हमें स्वाध्याय को याद रखने और चिन्तन करने की आदत बन जाएगी।
एक दिन परिका की friend कनिका उसके घर आई हुई थी। मार्च का महीना था। तभी बहुत तेज बारिश होने लगी। यह देखकर पारिका बोली.. कनिका देखो ना, मार्च में कितनी बारिश हो रही है जबकि इस बार सर्दी के मौसम में सूखा ही रहा।
कनिका— हां इस बार नाम की ही बारिश हुई दिसंबर में और फरवरी में तो इतनी गर्मी आ गई कि पंखे भी चलाने पड़ गए।
परिका— ऐसा लग रहा है, जो सर्दी फरवरी में आनी चाहिए थी, अब मार्च में आ गई है।
कनिका— मैंने तो अपने स्वेटर भी उठा कर रख दिए थे। अब दोबारा से निकालने पड़े। पारिका.. हां मैंने भी, अब पता नहीं कैसा मौसम हो रहा है, सुबह को स्वेटर पहनने पड़ रहे हैं, दोपहर को पंखा चल जाता है और रात को ठंड हो जाती है तो कम्बल ओढ़ना पड़ता है।
कनिका— आज के समय में मौसम को भी समझना बड़ा मुश्किल हो गया है।
परिका— जैसे इन्सान रंग बदलता है वैसे ही मौसम भी बार-बार रंग बदल रहा है।
कनिका हंसते हुए.. लगता है, मौसम पर भी मनुष्य की संगति का असर हो गया है।
पारिका— हा हा हा हंसते हुए, कनिका सही कह रही हो, पर मुझे किसानों के लिए बहुत दुख हो रहा है। उनकी गेहूं की फसल कटने को तैयार थी। अब daily यह तेज बारिश और तूफान के कारण उनकी फसल का बहुत नुकसान हो गया है।
कनिका—.यह बारिश यदि दिसम्बर में आती तो किसानों की फसल को लाभ होता। विज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली पर बेचारे किसानों के लिए इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकल पाया कि उनकी फसल मौसम के भरोसे ना रहती।
परिका— उनके लिए तो फसल investment की तरह होती है। फसल नष्ट हो जाती है तो उससे होने वाली income भी नष्ट और साथ ही investment भी नष्ट हो जाती है।
source-दैनिक जागरण
कनिका—यह सोचकर मुझे भी बहुत दुख होता है। वैसे एक positive कार्य हुआ है कि सरकार ने इस तरह की आपदा में फसल को होने वाले नुकसान के भुगतान के लिए, फसल सुरक्षा बीमा ऐसी कोई योजना शुरू कर दी है । इससे पहले तो किसानों के लिए ऐसी आपदा के समय बहुत ज्यादा मुश्किल हो जाती थी।
परिका—हां, इस बीमा योजना से उन्हें सपोर्ट तो मिल जाएगा पर फिर भी मैं तो यही प्रार्थना करती रही, हे वर्षा !अभी मत आओ। किसानों की फसल कट जाए, तब आ जाना।
कनिका—परिका तुम बहुत दयालु हो।
परिका—कनिका, वह तो तुम भी हो। हां, मैंने एक अच्छी खबर पढ़ी न्यूज़पेपर में। कुछ किसानों ने इस बार पराली को जलाया नहीं बल्कि मेहनत करके और कुछ लागत लगाकर, अपने खेतों की मिट्टी में उस पराली को मिला दिया, गेहूं का बीज बोने से पहले। और देखो ये चमत्कार हुआ कि वहां पर बहुत बारिश, तूफान, ओलावृष्टि हुई पर उनकी फसल नष्ट होकर, जमीन पर नहीं गिरी। उनके खेतों में पानी भी भर गया लेकिन मिट्टी में पराली मिली होने के कारण, फसल की जड़े मजबूत रही और फसल इस आपदा में भी सुरक्षित रही।
कनिका—अरे वाह परिका, ये तो तुमने बहुत अच्छी खबर सुनाई। पराली जलाने से तो बहुत ज्यादा वायु प्रदूषण हो जाता है। पराली जलने से पैदा हुआ धुआं, जब हवा के साथ दूर के शहरों में पहुंचता है तो लोगों का सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है।
परिका—हमारे यहां भी तो कितनी घुटन हो जाती है कनिका, दिवाली से पहले पराली के धुएं के कारण। इतना वायु प्रदूषण हो जाता है कि घर से बाहर निकलना भी कठिन हो जाता है। देखो तो कुदरत या प्रकृति का परोपकार, जिन किसानों ने प्रकृति के लिए सोचा, उसकी स्वच्छ वायु को पराली जला कर प्रदूषित नहीं किया और अन्य मनुष्यों के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा। प्रकृति ने उनका भी ध्यान रखा। इतने संकट में जहां दूसरे किसान मुश्किल में आ गए। वहीं इन किसानों की फसलें खेत में खड़ी, पहले की तरह मुस्कुरा रही हैं।
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source-दैनिक जागरण
कनिका—शायद इसे ही कहते हैं, कर भला तो हो भला।
परिका— बिल्कुल, किसी का भी भला करने का, अच्छा ही फल मिलता है। भले ही वह तुरन्त मिले या कुछ समय बाद मिले, उसका हमें पता चले या पता भी ना चले, पर अच्छा फल किसी ना किसी रूप में अवश्य मिलता ही है।
कनिका —-मुझे भी ऐसा ही लगता है,जैसे पराली न जलाने वाले किसानों को भी अपने अच्छे कार्य का अच्छा फल ही मिला।
परिका—हां कनिका, इसलिए हमें जब भी अवसर मिले भलाई के कार्य करते रहना चाहिए।
कनिका—हां बिल्कुल सही कहा परिका तुमने। मैं भी इस बात का ध्यान रखूंगी।
परिका की बचपन की friend सुरीली अब बंगलुरु में रहती थी। बचपन से ही सुरीली का सपना था कि वह किसी बड़ी कंपनी में किसी बड़े पद पर काम करें। talented तो सुरीली बहुत थी ही, जल्दी ही उसका यह सपना पूरा हो गया। छोटी उम्र में ही उसको बंगलुरु में आईटी कंपनी में जॉब मिल गया और अपने talent और लगन से, कम समय में ही, वो अपनी कंपनी में ऊंचे पद पर भी आ गई। अब उसके पास बहुत सैलरी पैकेज के साथ अपनी गाड़ी भी थी। उसका मन था जल्दी से अपना एक फ्लैट भी ले लूं।
कुछ दिन पहले सुरीली अपनी friend परिका से मिलने के लिए उसके शहर आई। परिका ने अपनी दूसरी friend कनिका को भी बुला लिया। तीनों आपस में मिलकर बातें करके, पुरानी यादों को ताजा कर, बहुत खुश हुई। एक दिन तीनों ने घूमने का प्रोग्राम बनाया।Amusment park गई, फिर PVR में मूवी देखी और बाद में मॉल में जाकर ढेर सारी शॉपिंग भी कर लाई।
शाम को तीनों घर आई तो थक गई थी। परिका की मम्मी ने सभी के लिए चाय बनाई और वह भी बैठ कर उनके साथ बातों में व्यस्त हो गई। बातों के बीच में ही परिका की मम्मी ने सुरीली से कहा– तुमने तो छोटी उम्र में ही इतना बड़ा सैलरी पैकेज पा लिया। तुम्हें तो किसी चीज की कमी नहीं होगी, बड़ी भाग्यशाली हो तुम।
यह सुनते ही सुरीली दुखी हो गई और बोली – आंटी सब लोग मुझे ये ही कहते हैं और देखो, सब को मेरा सैलरी पैकेज तो दिखता है कि 27 लाख का पैकेज है पर किसी को यह नहीं दिखता मुझे इसमें से 30% तक income tax में देना पड़ता हैं। Tax saving स्कीम में invest करने के बाद भी मुझे 5 लाख का टैक्स देना ही पड़ता है।
बहुत गुस्सा आता है मुझे, मन दुखी होता है। मैं मेहनत करती हूं और मेरी मेहनत का फल किसी और को देना पड़ता है। मन में घुटन होती है, पर क्या करूं, देना पड़ता है।
परिका यह सब सुन रही थी,थोड़ा मुस्कुरा कर बोली– सुरीली क्या दुनिया में टैक्स केवल तुम्हे ही देना पड़ता है किसी और को नहीं देना होता।
सुरीली चिढ़कर बोली– मुझे इससे मतलब नहीं, किसको देना होता है, किसको नहीं, बस मुझे मेरी कमाई का इतना बड़ा अमाउंट, बिना अपनी मर्जी के टैक्स में देना होता है, मुझे उससे गुस्सा आता है।
यह सुनकर परिका गंभीर होकर बोली– जब तुम्हे इतना बड़ा amount देना ही होता है तो तुम उसको टैक्स की तरह मत दो, बल्कि अपनी मर्जी से इस amount का त्याग कर दो।
सुरीली को गुस्सा आ गया – यह क्या बात हुई, वही तो हो रहा है, मेरा पैसा तो जा ही रहा है ना।
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परिका समझाते हुए बोली– नहीं,सुरीली दोनों में अंतर है। बिना मर्जी के, जब तुम उस बड़े amount को टैक्स का बोझ समझ कर दे रही हो तो तुम्हारा मन दुखी होता है। पर यदि तुम इस amount को, यह सोचकर त्याग कर दोगी कि मैंने इसे दान कर दिया तो तुम्हारा मन खुश होगा कि मैंने इतना बड़ा दान किया, मैं इस योग्य हूं कि मैं इतना बड़ा दान कर सकती हूं। फिर देखो तुम्हें अपने ऊपर गर्व होगा।
सुरीली को परिका की बात में थोड़ा दम नजर आया। कुछ सोचकर बोली– हां, दोनों सोच में अंतर तो नजर आता है।
परिका आगे बोली– इससे एक और लाभ तुम्हें मिलने वाला है।
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अब दोनों गंभीरता से बात करने लगी
सुरीली–कैसा लाभ?
परिका–इससे तुम्हें दान करने का पुण्य मिलेगा।
सुरीली–उस से क्या होगा ?
परिका– उस पुण्य से यह दान कभी ना कभी, किसी भी जन्म में दोगुना, चौगुना होकर, तुम्हारे पास लौटकर आएगा, मतलब ऐसा भाग्य तुम्हारा बनेगा और वह भाग्य तुम्हें आगे के जीवन या जन्मों में भी धनवान बनाकर रखेगा।
सुरीली– अच्छा, ऐसा भी होता है?
परिका – हां, अच्छे कार्य का अच्छा फल, हो सकता है तुरंत ना मिले पर वह कभी ना कभी, किसी भी समय, भले ही अगले जन्म में मिले पर मिलता जरूर है और किसी भी रूप में हमारे सामने आ जाता है। बस हमें पता नहीं चलता कि ये उस कार्य का अच्छा फल मिला, हमें इस रूप में।
अब देखो, सब लोग तुम्हें भाग्यशाली कहते हैं, इतने बड़े सैलरी पैकेज के लिए तो तुमने किसी जन्म में खूब बड़ा दान किया होगा, उसका ही यह फल हुआ कि तुम्हें छोटी उम्र में ही इतनी टैलेंट आ गई और इतना बड़ा सैलरी पैकेज मिल गया।
सुरीली कुछ सोचने लगी और बिल्कुल चुप हो गई। उसके साथ बाकी लोग भी चुप हो गए। एकदम सन्नाटा हो गया।
कनिका कुछ देर बाद बोली– क्या हुआ सुरीली? तुम्हे पारिका की बातें बातें व्यर्थ लगी क्या? जो तुम चुप हो गई। कुछ बुरा लग गया क्या?
सुरीली मुस्कुरा कर बोली –अरे बुरा नहीं लगा बल्कि एक अनमोल gift मिल गया।
कनिका ने पूछा– गिफ्ट कैसा?
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सुरीली – अरे अनमोल गिफ्ट, इसको तो मैं कभी नहीं भूलूंगी। मॉल से परिका ने मेरे लिए जो गिफ्ट खरीदे हैं, इनकी बात नहीं कर रही बल्कि जो बात उसने मुझे आज बताई, जब मैंने उस पर अभी सोचा तो उसको मैं गिफ्ट कह रही हूं। मुझे अब अच्छा लग रहा है। अब मुझे टैक्स देते हुए गुस्सा नहीं आएगा बल्कि खुशी मिलेगी और असंतोष की जगह यह संतोष कि मैं आगे के लिए अपना ही अच्छा भाग्य इस तरह बना लूंगी। सच में, मेरा यहां आना सफल हो गया। पूरे दिन के घूमने, मौज मस्ती में इतनी खुशी नहीं मिली जितना की परिका की इस बात को सोचकर मुझे मिल रही है।
दो दिन बाद सुरीली अपनी जॉब पर वापस अपने शहर चली गई। कुछ दिन बाद फोन करके परिका से बोली– परिका, इस साल मैंने अपनी मर्जी से बहुत बड़ा amount दान कर दिया है और दान करके बहुत संतोष मिल रहा है। परिका तुमने तो मेरे गुस्से और दुख को खुशी और संतोष में बदल दिया।
परिका के घर के पास एक मैदान था। जो उसकी बालकनी से दिखता था। उस मैदान में लोग कभी अपनी गाड़ियां खड़ी करते तो कभी सर्दी में धूप में बैठ जाते थे। कभी-कभी गायों का झुंड या कुत्तों का ग्रुप भी उस में धूप सेकते नजर आते थे। मार्च के महीने का अंतिम चरण चल रहा था। सूर्य की किरणें बहुत तेज हो गई थी। अब धूप अच्छी नहीं लग रही थी। एक दिन परिका ने देखा कि कुछ गाय इतनी तेज धूप में भी दोपहर 1:00 बजे तक उस मैदान में बैठी हैं। यह देखकर, परिका सोचने लगी क्या इन्हें गर्मी नहीं लग रही है? ये क्यों इतनी तेज धूप में बैठी है ? ऐसे तो इनको प्यास लग जाएगी, क्यों यें अपने शरीर को कष्ट दे रही हैं ?
प्रतिदिन परिका कुछ गायों के झुंड को वहां बैठे देखती और वही प्रश्न उसके मन में घूमने लगते। फिर उसके मन में ही answer आया, हो सकता है, इनको कोई health related Problem हो और यहाँ धूप में बैठकर इस तरह अपनी healing कर रही हों
इस तरह कुछ दिन बीत गए। एक दिन दोपहर 2:00 बजे के करीब परिका ने देखा कि दो गाय, एक काली और एक ब्राउन खड़ी है और एक सफेद गाय बैठी है। उसके पास एक छोटा सा सफेद रंग का बछड़ा भी खड़ा दिखाई दे रहा है। छोटा बछड़ा गाय के पास खड़ा होकर एक साइड से, दूसरी साइड जाने की कोशिश कर रहा है, पर इतना कमजोर है कि उससे चला भी नहीं जा रहा था। बड़ी मुश्किल से गाय के दूसरी और जाकर उसके पास खड़ा हो गया, पर गाय का तो कोई reaction ही नहीं था।ऐसा लग रहा था जैसे कि वह उसे जानती ही ना हो।
परिका की एक friend भी उसके घर आई हुई थी। वह भी उस बछड़े को देखने लगी और उन दोनों को उस बछड़े पर तरस आने लगा। परिका बोली.. इससे चला नहीं जा रहा है फिर क्यों गाय के चारों तरफ घूम रहा है ।
तभी उन्हें लगा शायद ये अभी अभी पैदा हुआ है और इसलिये ही इससे चला भी नहीं जा रहा है और भूखा भी है। गाय जिस तरह उसकी उपेक्षा कर रही थी, उसे देखकर, उन्हें लगा कि ये शायद थोड़ी दूर पर खड़ी, उन दोनों गाय में से किसी का बछड़ा है और गलती से इस गाय को अपनी मां समझ रहा है।
थोड़ी देर बाद उन्होंने देखा…वह ब्राउन रंग वाली गाय के पास आकर खड़ा हो गया। अब उन दोनों को समझ आ गया कि ये इस गाय का ही बछड़ा है। अचानक उन्होंने देखा कि ब्राउन गाय ने उसे उपेक्षित कर दिया और अपने मुंह से उसे दूर को धकेल दिया। बछड़ा बेचारा लड़खड़ाता हुआ वहीं बैठ गया। थोड़ी देर में खड़ा हुआ, फिर ब्राउन गाय के पास आ गया। इस बार गाय ने और तेजी से अपने मुंह से, उस बछड़े को दूर धकेल दिया। थोड़ी दूर लड़खड़ाकर चलता हुआ बछड़ा छाया में बैठ गया।
तभी दो कुत्ते वहाँ आ गए और उस बछड़े को भौंकने लगे। यह देखकर काली और ब्राउन गाय तेजी से आईं और कुत्तों को डरा कर भगा दिया। परिका और उसकी Friend सोचने लगीं कि ये ब्राउन गाय का ही बछड़ा है और इसकी माँ इसको धकेल नहीं रही, बल्कि इस तरह इसको चलना सिखा रही थी।
दोनों निश्चिंत होकर कमरे में आकर बैठ गईं। शाम होने को थी , तभी वे बालकनी में गईं तो देखा सभी गाय जा चुकी थीं केवल एक सफेद गाय मैदान में बैठी थी और बछड़ा उसके पास खड़ा था। दोनों को लगा ये बछड़ा तो फिर इस गाय के पास आ गया। वे दोनों कुछ समझ नहीं पा रही थीं। परिका बोली… क्या यह सफेद गाय का ही बछड़ा है और गाय इतनी निर्मोही कैसे दिख रही है कि कोई वात्सल्य बछड़े के लिये नहीं दिखा रही। यह गाय भी, बछड़ा भी इतनी देर से भूखे प्यासे हैं। रात होने को हो रही है कुछ समझ नहीं आ रहा।
दोनों को बछड़े के भाग्य पर तरस आ रहा था कि बेचारा भूखा है, चला नहीं जा रहा और यह भी नहीं पता इसकी माता कौन सी गाय है? कोई भी गाय इसको वात्सल्य नहीं दे रही थी।
परिका और उसकी friend कनिका दुखी होकर उनके बारे में बात करने लगीं .. कैसा कठिन जीवन है इन पशुओं का? कितना कष्ट चुपचाप सहन करते हैं? शांत रहते हैं और मनुष्य तो जरा सा कष्ट हुआ नहीं कि चिल्लाने लगता है। अपने साथ दूसरों को भी दुखी कर देता है।
कनिका परिका से बोली.. यह बछड़ा और गाय तो मुझे बहुत अजीब लग रहे हैं। मैंने तो छोटे बछड़ों को रम्भाते हुए सुना है, यदि उसकी मां थोड़ी दूर भी चली जाए और गाय भी ऐसे में रम्भाकर, अपनी आवाज में अपने बछड़े को बुलाती है। यहां तो ना तो यह बछड़ा कुछ आवाज कर रहा है। और गाय को देख कर तो ऐसा लग रहा है जैसे उसे इस बछड़े में से कोई मतलब ही नहीं।
यह सुनकर परिका बोली… यही बात मेरे मन में भी घूम रही है। ऐसा क्यों हो रहा है? ये हो सकता है कि यह किसी और गाय का बछड़ा हो और कोई इसे यहां छोड़ गया हो। बेचारा कितना कमजोर, दुर्बल और इस गर्मी में भूखा प्यासा अपनी मां को ढूंढ रहा है। हे भगवान! इसके लिए कुछ कर दो। मुझ से इस बछड़े का कष्ट नहीं देखा जा रहा है।
थोड़ी देर बाद दोनों बालकनी में गईं, गाय और बछड़े को देखने, तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने देखा, सफेद गाय खड़ी हो हुई है और बछड़ा उसका दूध पी रहा है। गाय अपने बछड़े पर वात्सल्य उंडेल रही थी। दोनों प्रसन्नता से बहुत देर तक बछड़ेऔर गाय को देखती रहीं। वे इस बात को सोच कर खुश थीं कि चलो इस बेचारे बछड़े का कुछ पेट भर गयाl अपनी मां का इसे वात्सल्य मिल गया। कुछ देर पहले तो अनाथ की तरह घूम रहा था।
दोनों निश्चिंत होकर अपने काम में लग गईं। रात को 8:00 बजे परिका ने देखा, वह सफेद गाय और बछड़ा अभी भी मैदान में थे। बाकी सभी गाय वहाँ से जा चुकी थीं। गाय बैठी थी और बछड़ा उस से सटा हुआ खड़ा था। मैदान में बिखरी चाँद की रोशनी में बछड़ा ऐसा लग रहा था जैसे कोई सफेद रंग का सुंदर सा हिरण खड़ा हो।
परिका बछड़े के लिए तो खुश हुई पर उसे लगा, शायद यह गाय बीमार है। तभी तो अभी तक यहाँ बैठी है और अपने बछड़े पर भी इसने इतनी देर बाद ध्यान दिया। हो सकता है किसी कष्ट में हो। यह भी बेचारी भूखी प्यासी है। गर्मी में इसे भी तो प्यास लग रही होगी। मैदान थोड़ा दूर था, रात में गाय के लिए पानी ले जाना परिका के लिए संभव नहीं था। फिर उसने सोचा हो सकता है गाय को अभी पानी नहीं पीना हो, इससे यहां बैठी है।
रात को 12:00 बजे सोने सोने जाने से पहले परिका एक बार फिर गाय बछड़े को देखने के लिए बालकनी में आई। उसने देखा किसी व्यक्ति ने एक पानी की बाल्टी गाय के आगे रख दी थी और गाय खड़े होकर पानी पी रही थी। यह देख कर पारिका को बहुत खुशी मिली। उसका मन, इतना आनन्दित था, जैसे अपनी कोई महत्वपूर्ण इच्छा पूर्ण होने पर होता है। निरीह पशुओं के दुख को समझने में वो अपनी जिंदगी की टेंशन भी भूल कर, अपने को हल्का महसूस कर रही थी।
अगले दिन सुबह जब परिका उठी तो उसने देखा गाय और बछड़ा दोनों मैदान से गायब थे। थोड़ी देर में उसने देखा, वही सफेद गाय रम्भाती हुई मैदान के पास घूम रही है। पर उसका बछड़ा गायब था। परिका का मन आशंका से भर गया.. बछड़ा कहां चला गया? कोई ले तो नहीं गया, बेचारे मासूम को? बेचारी गाय अपने बछड़े को ढूंढती फिर रही है। कितने खतरो में और अनिश्चित जिंदगी है इन पशुओं की।
दिन के 11:00 बजे गए तो दूसरी गायों का झुंड प्रतिदिन की तरह धूप में आकर बैठ गया। वह सफेद गाय भी वहां पर एक अन्य गाय के साथ खड़ी थी। पर कहीं भी बछड़ा नहीं दिख रहा था। परिका प्रत्येक 10 मिनट बाद आकर बालकनी में देख रही थी कि कहीं बछड़ा दिख जाए लेकिन वह बछड़ा कहीं नहीं था। गाय भी थक कर बैठ गई थी।
परिका के मन में आशंका बढ़ गई …लगता है रात को ही कोई बेचारे बछड़े को ले गया। वरना तो यहीं दिखता और यह गाय भी अब चुप होकर बैठ गई, अपनी किस्मत से समझौता करके, ऐसा लगता है। परिका बस अब उस बछड़े के बारे में सोच रही थी… पता नहीं बेचारा कहां होगा? कितना दुख उसने पैदा होते ही देखा? परीका का मन दुख से भर उठा था। तभी घड़ी की सुई 12:00 बजे के आसपास थी कि किसी गाय के रम्भाने की आवाज आई। दुखी मन से परिका बालकनी में गई पर वहाँ जाते ही खुश हो गई। देखा वहीं छोटा सा सुंदर बछड़ा सफेद गाय के पास खड़ा था। परिका ने चैन की सांस ली..चलो यह सही सलामत है। भगवान ने इसकी रक्षा की। शाम तक वह गाय और बछड़ा उसी मैदान में रहे फिर अपने स्थान पर चले गए।
परिका को जब भी यह घटना याद आती, उसका मन खुश हो जाता। उसे लगता अपने लिए तो अच्छा सभी चाहते हैं पर किसी दूसरे के लिए अच्छा चाहने का आनंद ही अलग होता है। जब लाचार, बेसहारा पशुओं के लिए अच्छी भावना की जाती है और वह साथ ही साथ पूरी हो जाती है तो उसका आनंद भी दुगना हो जाता है। परिका को उस दिन नया अनुभव हुआ.. जब अपना मन अपनी टेंशन में दुखी हो तो दूसरे दुखी जनों के बारे में अच्छी भावना करने से, अपना दुख और कष्ट भी कम हो जाता है।