दुख और गुस्सा कैसे बदला खुशी और संतोष में

 

 परिका की बचपन की friend सुरीली अब बंगलुरु में रहती थी। बचपन से ही सुरीली का सपना था कि वह किसी बड़ी कंपनी में किसी बड़े पद पर काम करें। talented तो सुरीली बहुत थी ही, जल्दी ही उसका यह सपना पूरा हो गया। छोटी उम्र में ही उसको बंगलुरु में आईटी कंपनी में जॉब मिल गया और अपने talent और लगन से, कम समय में ही, वो अपनी कंपनी में ऊंचे पद पर भी आ गई। अब उसके पास बहुत  सैलरी पैकेज के साथ अपनी गाड़ी भी थी। उसका मन था जल्दी से अपना एक फ्लैट भी ले लूं।
 
  कुछ दिन पहले सुरीली अपनी friend परिका से मिलने के लिए उसके शहर आई। परिका ने अपनी दूसरी friend कनिका को भी बुला लिया। तीनों आपस में मिलकर बातें करके, पुरानी यादों को ताजा कर, बहुत खुश हुई। एक दिन तीनों ने घूमने का प्रोग्राम बनाया।Amusment park गई, फिर PVR में मूवी देखी और बाद में मॉल में जाकर ढेर सारी शॉपिंग भी कर लाई।
शाम को तीनों घर आई तो थक गई थी। परिका की मम्मी ने सभी के लिए चाय बनाई और वह भी बैठ कर उनके साथ बातों में व्यस्त हो गई। बातों के बीच में ही परिका की मम्मी ने सुरीली से कहा– तुमने तो छोटी उम्र में ही इतना बड़ा सैलरी पैकेज पा लिया। तुम्हें तो किसी चीज की कमी नहीं होगी, बड़ी भाग्यशाली हो तुम।
 
यह सुनते ही सुरीली दुखी हो गई और बोली – आंटी सब लोग मुझे ये ही कहते हैं और देखो, सब को मेरा सैलरी पैकेज तो दिखता है कि 27 लाख का पैकेज है पर किसी को यह नहीं दिखता मुझे इसमें से 30% तक income tax में देना पड़ता हैं। Tax saving स्कीम में invest करने के बाद भी मुझे 5 लाख का टैक्स देना ही पड़ता है।
बहुत गुस्सा आता है मुझे, मन दुखी होता है। मैं मेहनत करती हूं और मेरी मेहनत का फल किसी और को देना पड़ता है। मन में घुटन होती है, पर क्या करूं, देना पड़ता है।
परिका यह सब सुन रही थी,थोड़ा मुस्कुरा कर बोली– सुरीली क्या दुनिया में टैक्स केवल तुम्हे ही  देना पड़ता है किसी और को नहीं देना होता।
 सुरीली चिढ़कर बोली– मुझे इससे मतलब नहीं, किसको देना होता है, किसको नहीं, बस मुझे मेरी कमाई का इतना बड़ा अमाउंट, बिना अपनी मर्जी के टैक्स में देना होता है, मुझे उससे गुस्सा आता है।
यह सुनकर परिका गंभीर होकर बोली– जब तुम्हे इतना बड़ा amount देना ही होता है तो तुम उसको टैक्स की तरह मत दो, बल्कि अपनी मर्जी से इस amount का त्याग कर दो। 
सुरीली को गुस्सा आ गया – यह क्या बात हुई, वही तो हो रहा है, मेरा पैसा तो जा ही रहा है ना।
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परिका समझाते हुए बोली– नहीं,सुरीली दोनों में अंतर है। बिना मर्जी के, जब तुम उस बड़े amount को टैक्स का बोझ समझ कर दे रही हो तो तुम्हारा मन दुखी होता है। पर यदि तुम इस amount को, यह सोचकर त्याग कर दोगी कि मैंने इसे दान कर दिया तो तुम्हारा मन खुश होगा कि मैंने इतना बड़ा दान किया, मैं इस योग्य हूं कि मैं इतना बड़ा दान कर सकती हूं। फिर देखो तुम्हें अपने ऊपर गर्व होगा।
 
सुरीली को परिका की बात में थोड़ा दम नजर आया। कुछ सोचकर बोली– हां, दोनों सोच में अंतर तो नजर आता है।
परिका आगे बोली– इससे एक और लाभ तुम्हें मिलने वाला है।
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अब दोनों गंभीरता से बात करने लगी
 सुरीली–कैसा लाभ?
 परिका–इससे तुम्हें दान करने का पुण्य  मिलेगा।
 सुरीली–उस से क्या होगा ?
परिका– उस पुण्य से यह दान कभी ना कभी, किसी भी जन्म में दोगुना, चौगुना होकर, तुम्हारे पास लौटकर आएगा, मतलब ऐसा भाग्य तुम्हारा बनेगा और वह भाग्य तुम्हें आगे के जीवन या जन्मों में भी धनवान बनाकर रखेगा।
सुरीली– अच्छा, ऐसा भी होता है?
 
परिका – हां, अच्छे कार्य का अच्छा फल, हो सकता है तुरंत ना मिले पर वह कभी ना कभी, किसी भी समय, भले ही अगले जन्म में मिले पर मिलता जरूर है और किसी भी रूप में हमारे सामने आ जाता है। बस हमें पता नहीं चलता कि ये उस कार्य का अच्छा फल मिला, हमें इस रूप में।
 अब देखो, सब लोग तुम्हें भाग्यशाली कहते हैं, इतने बड़े सैलरी पैकेज के लिए तो तुमने किसी जन्म में खूब बड़ा दान किया होगा, उसका ही यह फल हुआ कि तुम्हें छोटी उम्र में ही इतनी टैलेंट आ गई और इतना बड़ा सैलरी पैकेज मिल गया।
सुरीली कुछ सोचने लगी और बिल्कुल चुप हो गई। उसके साथ बाकी लोग भी चुप हो गए। एकदम सन्नाटा हो गया।
 कनिका कुछ देर बाद बोली– क्या हुआ सुरीली? तुम्हे पारिका की बातें  बातें व्यर्थ लगी क्या? जो तुम चुप हो गई। कुछ बुरा लग गया क्या?
सुरीली मुस्कुरा कर बोली –अरे बुरा नहीं लगा बल्कि एक अनमोल gift मिल गया।
कनिका ने पूछा– गिफ्ट कैसा?
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 सुरीली – अरे अनमोल गिफ्ट, इसको तो मैं कभी नहीं भूलूंगी। मॉल से परिका ने मेरे लिए जो गिफ्ट खरीदे  हैं, इनकी बात नहीं कर रही बल्कि जो बात उसने मुझे आज बताई, जब मैंने उस पर अभी सोचा तो उसको मैं गिफ्ट कह रही हूं। मुझे अब अच्छा लग रहा है। अब मुझे टैक्स देते हुए  गुस्सा नहीं आएगा बल्कि खुशी मिलेगी और असंतोष की जगह यह संतोष कि मैं आगे के लिए अपना ही अच्छा भाग्य इस तरह बना लूंगी। सच में, मेरा यहां आना सफल हो गया। पूरे दिन के घूमने, मौज मस्ती में इतनी खुशी नहीं मिली जितना की परिका की इस बात को सोचकर मुझे  मिल रही है।
 
दो  दिन बाद सुरीली अपनी जॉब पर वापस अपने शहर चली गई। कुछ दिन बाद फोन करके परिका से बोली– परिका, इस साल मैंने अपनी मर्जी से बहुत बड़ा amount दान कर दिया है और दान करके बहुत संतोष मिल रहा है। परिका तुमने तो मेरे गुस्से और दुख को खुशी और संतोष में बदल दिया।
——-story written by spring Season
 

Rating: 5 out of 5.
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7 Comments

  1. अति सुंदर प्रेरक कहानी ,सभी के पढ़ने योग्य।

  2. बहुत ही सच्चा अच्छा,सम्यक चिंतन।

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