जिन्दगी का मूल्य

जिन्दगी का मूल्य 


कानों में इयरफ़ोन लगाकर सड़कों और रेलवे लाइन पर,

चलते हुए अपनी जान क्यों गंवाते हैं लोग ?

शादी की खुशी में लापरवाही से फायर कर,

खुशी के माहौल को गम में क्यों बदल डालते हैं लोग ?

गाड़ियों को तेज रफ़्तार से दौड़ा कर,

अपनी और दूसरों की जान क्यों ले डालते हैं लोग ?

दिन रात ये खबरें आती हैं फिर भी,

क्यों नहीं सावधान और जागरूक हो पाते हैं लोग ?

अपनी और दूसरों की जिन्दगी छीन कर,

अनेक घरों और परिवारों में अँधेरा क्यों कर जाते हैं लोग ?

गुस्से में नियंत्रण खो कर,क्यों दूसरों की हत्या कर देते हैं लोग ?

निराशा और तनाव में आत्महत्या कर,

क्यों अपना मनुष्य जीवन खो देते हैं लोग ?

शराब के नशे में गाड़ी चलाकर,

अनेकों जिंदगियों को क्यों लील जाते हैं लोग ?

ड्राइविंग सीट पर बैठ कर, क्यों सो जाते हैं लोग ?

भागदौड़, जल्दी – जल्दी, इस जल्दबाजी में,

क्यों जानें दाँव पर लगाते हैं लोग ?

समय तो किसी के लिए नहीं ठहरता,

पर समय की जल्दी में,जिन्दगी के समय को

हमेशा के लिए क्यों ठहरा जाते हैं लोग ?

पतझड़ का मौसम

पतझड़ का मौसम


एक था पेड़,उस पर रहते थे बहुत से पक्षी |

पेड़ ने पतझड़ में अपने पत्ते गिराए,

यह देखकर सभी पक्षी अकुलाए |

पक्षियों ने कुछ दिन बसेरा किया दूसरे पेड़ पर,

अ़ब नए पत्ते उग गए हैं पुराने पेड़ पर |

पक्षी होकर खुश आ गए पुराने ठिकाने पर,

और होड़ मची है नया घोंसला बनाने पर ||

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पेड़ लग रहा है बहुत सुन्दर,कोयल गा रही है गीत जी भरकर |

इस मौसम में पेड़ पौधे लग रहे हैं ताजा

और पक्षियों का बज रहा है बैंड-बाजा ||

मानसून अब आ भी जाओ

मानसून अब आ भी जाओ ।

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पानी की फुहारें ले आओ,

प्यासी धरती की प्यास बुझाओ,

किसानों की उम्मीद जगाओ,

बारिश का मौसम बनाओ,

ठंडी – ठंडी हवा चलाओ,

मानसून अब आ भी जाओ ।

पूर्वोत्तर में तुम बरस गए हो,

पर वहाँ पर क्यों अटक गए हो,

क्या तुम रास्ता भटक गए हो ?

जो पहाड़ों में लटक गए हो,

गर्मी से हमें राहत दिलाओ,

मानसून अब आ भी जाओ ।

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सूख रही हैं नदियाँ सारीं,

पानी की है मारा मारी,

गर्मी पड़ रही है सब पर भारी,

चिड़ियों की बंद है किलकारी,

थोड़ी सी तो दया दिखाओ,

मानसून अब आ भी जाओ ।

पेड़ों की हरियाली सूख गई,

घास भी हँसना भूल गई,

प्रकृति भी हमसे रूठ गई,

इन्तजार की घड़ियाँ छूट गईं,

सबको मत इतना तरसाओ,

मानसून अब आ भी जाओ ।